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________________ ऐसे ही दो महान आत्माऐं है जिन्होंने इस संसार में अवतार लेकर जन-जन के लिए पथ प्रदर्शक बनी है। वे है स्व. पूज्य श्री कानकंवर जी म. एवं श्री चम्पाकंवर जी म. ये दोनों जैन समाज के उज्ज्वल नक्षत्र के समान थी। जिनकी साधना का लक्ष्य जो आत्मा अनादिकाल से इस चार गति चौरासी लाख जीवायोनि में परिभ्रमण कर रही है। उस परिभ्रमण मुक्त होने के लिए कौन सा रास्ता अपनाये किस मार्ग पर अपने कदम बढ़ाये जिससे यह आत्मा जल्दी से जल्दी इस संसार से अलग हो जाये। उनके मन में विचार आया जब तक हम संसार में रहेंगे, घर गृहस्थी में रहेंगे तब तक हम साधना नहीं कर सकेंगे। आत्मा को पावन नहीं कर सकेंगे। आत्मा के उत्थान के लिए उनको एक ही महामार्ग नजर आया। अगर उस मार्ग पर अपने कदम को बढोयें तो एक न एक दिन तो हम आत्मा से परमात्मा बन सकेंगे । वह मार्ग था संयम का, दीक्षा का। उन दोनों महान, आत्माओं ने अपने आप को संसार से अलग करके संयम रूपी खाड़े की धार पर चलकर अपने तन मन को त्याग, तपस्या सेवा जप तप के द्वारा अपने जीवन को सुवासित किया। सरलता को अपने जीवन में अपनाया। सरलता एक महान गुण है। जिसने इसे अपनाया उसका कल्याण हो गया। क्योंकि प्रभु महावीर ने कहा जिस हृदय में सरलता नहीं होती वहाँ पर धर्म टिक नहीं सकता है। जहाँ पर शुद्धता है वही पर धर्म है। धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई। सरलता ही मोक्ष का राज मार्ग है। आपने प्रभुवीर की वाणी का हृदयंगम करके उसी मार्ग पर अनपे आप को समर्पित कर दिया। ऐसे महान आत्माओं के गुण हम लिख नहीं सकते हैं। उन्हें अपने टूटे फूटे शब्दो में अभिव्यक्त नहीं कर सकते है। जैसे सागर को कोई व्यक्ति नापना चाहे तो नहीं नाप सकता है उसी प्रकार महापुरुषों के गुण कीर्तन हम नहीं लिख सकते है। ऐसे महान साध्वियों को मैं हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हैं। *** ** मुझे स्मृति है पंडितजी श्री विचक्षण मुनि, तिरुपति स्मृति शब्द का अर्थ हैं- यादगार (मधुर यादगार ) इस अनादि अनंत संसार में अनन्ता जीवात्मा प्रतिक्षण जन्म लेते हैं और स्व आयुष्यानुसार मृत्यु को प्राप्त करते है। कब जन्मा कब मेरा, कौन याद रखता है। समय के थपेडों में सब की विस्मृति हो जाती है। संसार में कोई-कोई विरली आत्मा ही होती है जिन्हें जगत विस्मरण नही कर पाता है । ऐसी ही सेवा एवं साधना की प्रतिमूर्ति शासन प्रभाविका महासाध्वी कानकंवरजी म.सा. तथा परम विदुषी अध्यात्म योगिनी दृढ़ आत्मविश्वासी महासती चम्पाकंवर जी म.सा नश्वर शरीरोपरान्त भी स्मृति पटल पर है। Jain Education International महान आत्माओं का जीवन प्रकाश स्तंभ के समान होता है। जैसे अंधकार में तूफान ज्वार भाटा आदि से भटके हुए जहाजों को प्रकाश स्तंभ गन्तव्य पथ बतलाता है । उसी प्रकार पूज्या साध्वी जी म.सा. का जीवन रहा। अनेकानेक भटके कंट काकीर्ण पथ में फंसे पथिकों को सम्यक्तत्व का पथ दिखाकर गंतव्य पथ पर लगाया हैं । (१८) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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