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________________ संयम साधना को निकटता से देखा था। लगभग ५ महीने के अन्तराल में काल कराल ने महासती जी म. को भी अपनी चपेट में ले लिया। इसी लिए तो जीवन की क्षणभंगुरता पर कबीर ने कहा था - माली आवत देख कर, कलियाँ करी पुकार फूले-फूले चुन लिये, कल ही हमारी बार। आना जाना तो संसार में लगा ही रहता है पर स्व-पर कल्याणी आत्माओं का अकस्मात विछोह असह्य होता है। श्रमण संघ की महकती हुई कलियों को छीनकर काल कराल ने अपूरणीय क्षति की है। परन्तु इस घड़ी को टाल भी कौन सकता है। मैं शासनेश महाप्रभु से यही प्रार्थना करता हूँ कि साध्वी जी की आत्मा को चिर शांति प्राप्त हो। श्रद्धांजलि पुष्प • श्री अचल मुनि संसार परिवर्तनशील है। समय-समय पर हर वस्तुओं मे परिवर्तन आ जता है। कालानुसार क्योंकि समय का ऐसा प्रभाव पड़ता हैं कि चाहे वह मानव हो, चाहे, देव हो, चाहे वह एकेन्द्रिय जीव से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव हो, चाहे वह देवाधिदेव तीर्थकर ही क्यों न हों, संसार की प्रत्येक वस्तु या प्राणों पर काल का प्रभाव पड़ता हैं। __ जैसे एक सुन्दर सुहावना बाग है, उसमें समय आने पर अनेक प्रकार के पुष्प खिलते हैं। पुष्प खिलने से बाग का सम्पूर्ण वातावरण सुहावना, और मनोरम बन जाता है। उस बाग में परिभ्रमण करने वाले व्यक्तियों के लिए जीवन दायी शुध्द आक्सीजन मिलता है। लेकिन जैसे-जैसे समय का चक्र बितता जाता है। वही बाग जो कुछ समय पूर्व सुन्दर और सबके हृदय को आनंद प्रदान करने वाला था। उसी बाग पर प्रकृति की मार ऐसा पड़ती है कि वहीं बाग रेगिस्तान में परिवर्तित हो जाता हैं। __ यह सब किसके कारण हुआ? यह किसी व्यक्ति ने नहीं किया। यह सब कुछ जो परिवर्तन हुआ है वह काल का प्रभाव है इस काल के प्रभाव से कोई भी नहीं बच सकता है। इसी प्रकार इस संसार में हजारों व्यक्ति जन्म लेते है। जन्म लेकर अपने जीवन को अधर्म के मार्ग में लगाकर इस अमल्य मानव शरीर को प्राप्त कर उसे उत्थान की ओर ले जाने के बजाय पतन की ओर ले जाते है। ऐसे अधर्मी पापी पतनगामी जीव के मर जाने पर कोई भी व्यक्ति उसे स्मरण नहीं करता है। लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जो इस रंगरंगीली दुनियाँ में जन्म धारण करके मानव जीवन की महत्ता को समझकर अपने आत्मोत्थान के लिए एक ऐसा महामार्ग चुन लेते है। जिस मार्ग पर अपने जीवन को अग्रसर करके, आत्म विकास करके स्वयं संमार्ग का पथिक बनकर स्वयं संमार्ग पर अपने कदमों को आगे बढ़ाता है। और संपर्क में आने वालों को सही मार्ग दर्शन कराना है। स्वयं तैरता है और दूसरों को ताराता है। उन्हें ही हम महापुरुष की संज्ञा देते हैं। (१७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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