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________________ (३) सर्व दुखो का मूल कारण - प्रभु महावीर ने सर्व दुखो का कारण पारिग्रह (मूर्छा) को बताते हुए, उसे मांस के टुकड़े की उपमा दी है। एक बार एक बगुला कसाई की दुकान से एक मांस का टुकड़ा लेकर वृक्ष पर जा बैठा, तो वहाँ कव्वे, चीलें व गिद्द आदि उसके पीछे पड़ गए। बगुला वहाँ से से जल में चला गया तो वहाँ मगर, घड़ियाल आदि पीछे पड़ गए। बगुला परेशान होकर जल के बाहर किनारे पर आ बैठा तो वहाँ भी कुत्ते, सूअर आदि ने आ घेरा। अन्ततः उसने सारे झगड़े की जड़ मांस के टुकड़े को छोड़ दिया, तब ही वह शान्ति और सुख चैन से रह सका। ___ इस उदाहरण से सुस्पष्ट है कि जब तक धन आदि पर ममता (मूर्छा) की पकड़ रहेगी, जीवन में विविध दुःख और अशान्ति बनी रहेगी। समता योग से लाभ - (१) समता से ही चारित्र की उपलब्धि - शास्त्रकारों ने फरमाया है -'चास्ति समभावो।” अर्थात् समभाव आने पर ही चारित्र प्राप्त होता है। अभव्य जीव, मुनि का द्रव्यं लिंग धारग कर गौतस स्वामी जैसी क्रिया कर लेता है किन्तु उसमें समता के अभाव से निश्चय से एक भी चारित्र नहीं होता है। (२) समता से ही सच्ची सामायिक होना - सामायिक का मूल आधार ही समता है, कहा है “समता भाव धारण करे, जो देखे निज रूप। सामायिक तेने कहे, जे, सुख शान्ति स्वरूप॥" बिना समता, सामायिक के अन्य सभी दोषो को टाल कर विधिपूर्वक की गई सामायकि भी सच्ची सामायिक नहीं हो सकती है। सामायिक की व्याख्या में भी कहा है -'समता सर्वभूतेषु अर्थात् समस्त. प्राणियों पर समता हो। सामायिक का स्वरूप बताते हुए ज्ञानी कहते हैं - “जो समो सव्व भूए सु, तमे थावरे सुय। तस्स सामाइयं होइ, इह केवलि भासियं॥ ५ इस प्रकार सुस्पष्ट है कि सामायिक की प्राथमिक शर्त 'समता' है और बिना समता के सच्ची सामायिक नहीं हो सकती है। यह समता योग की आराधना से ही संभव है। (३) समता सभी व्रतों का आधार है - सभी व्रत, प्रत्याख्यान, यम नियम, संयम की शुद्ध पालना समता भाव में ही संभव है। विसमता आते ही इन सबका अस्तित्व, उसी प्रकार खतरे में पड़ जाता है, जिस प्रकार समुद्र में तूफान आने पर उसमें जहाज में रहे प्राणियों का। (8) समता से मनुष्य महान होता है - एक बार विद्वद् गोष्ठी में प्रश्न उठा कि महान कौन? उत्तर में एक ने कहा जो सर्वाधिक ज्ञानी हो। दूसरे ने कहा जो सबसे बढ़िया प्रवचन कार हो। तीसरे ने सूत्रकृतांग सूत्र पंचास्तिकाय १०७ आवश्यक नियुक्ति, अनुयोगद्वार गा. १२८ ५. (१३३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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