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'ममता' के पाँच पुत्र और अगणित संबंधी है। पाँच पुत्र हैं (i) मिथ्यात्व (ii) अव्रत (ii) कषाय (iv) प्रमाद व (v) अशुभ योग। संबंधी है क्रोध, मान, माया, लोभ, मद, मत्सर, राग, द्वेष, काम, भय, घृणा, अशान्ति, कलह, क्षोभ, तृष्णा, बैर, हिंसा, असत्य अदत्त, अब्रह्म, परिग्रह, निर्दयताा, रति, अरति, अभ्याख्यान, वक्रता, छल, कपट आदि पाप वृत्तियाँ एवं सभी दुर्गुण। 'समता' के भी पाँच पुत्र है और अगणित संबंधी हैं। पाँच पुत्र हैं (i) सम्यक्तव (ii) विरति (iii) अकजाय (iv) अप्रमत्त व (v) शुभ (या शुद्ध) योग। संबंधी है- शम, संवेग, निवेद, आस्व, अनुकम्पा, दया, शान्ति, क्षमा, त्याग, वैराग्य, सत्य, अहिंसा, अचौर्य, शील, अपरिग्रह, सरलता, सहिष्णुता, मृदुता, विनम्रता, अमत्सर्यता, अजुता, लघुता, मुमुक्षता, निस्मृह सेवा, संवर तथा निर्जरा आदि शुभ व शुद्ध प्रवृत्तियाँ एवं सभी सद्गण।
समता सुख का तो ममता दुख का मूल है। प्रभु से पूछा गया -“किं सुख दुख मूलं ?" उत्तर में प्रभु ने फरमाया -'समता ममताभिधानः।” २ अर्थात् समता और ममता उनके मूल हैं। वस्तुतः चिंतन करने पर स्पष्ट होता है कि आनंद और सुख का लूख संतोष है, और संतोष का मूल समता है। इसी तरह दुःख व शौक का मूल मोह है, मोह का मूल लोभ और लोभ का भी मूल भमता है। इसी कारण से सुख का मूल समता भी दुःख का मूल ममता बताया गया है।
ममता से हानियाँ -
(१) मोक्ष मार्ग की प्राप्ति न होना - जब तक आत्मा से ममता (तीव्र आसक्ति) न हटे, मोक्ष मार्ग की उपलब्धि नहीं होती। अनंतानुबंधी कषाय तथा दर्शन मोहनीय, ममता की प्रमुख जड़े हैं। जब तक ये विनष्ट न हो, तब तक जीव कितना ही ज्ञान ध्यान, जब तप व त्याग वैराग्य की साधना कर ले, उसे धर्म की प्रथम भूमिका 'सम्यक्तव' ही प्राप्त नहीं होती है।
(२) प्राण विनाशक होना - अनेक प्राणी तीव्र ममतावश आत्मघात कर लेते हैं। कभी आत्मघात की इच्छा न होते हुए भी तीव्र मुच» होने से अकाल मृत्यु हो जाती है। उदाहरणार्थ एक बार एक ईसाई अध्यापक के नाम पर पाँच लाख की लाटरी खुली, जिसकी जानकारी उसके पुत्र को मिली पुत्र समझदार था। उसने विचार किया इसकी सूचना एक दम पिताजी को देना, उनके लिए घातक भी हो सकता है। वह धर्म पादरी के पास पहुँचा। पादरी ने कहा -तुम चिंता मत करो। इनाम किश्तों में लेना है। मैं इसकी सूचना तुम्हारे पिताजी को इस तरह दूंगा कि वे इस खुश खबरी को सुनकर भी आश्चर्य में न पड़े।" पादरी स्कूल जाकर उस अध्यापक से मिला। पादरी ने कहा -तुम्हारे नाम एक लाख की लाटरी खुली है। अध्यापक ने प्रसन्न हो कहा -यह सही है तो पचास हजार मैं तुम्हें दे दूंगा।” पादरी पुनः बोला -लाटरी दो लाख की खुली है।" अध्यापक ने कहा -“तो एक लाख तुम्हें दूँगा।” इस तरह पादरी ने क्रमशः तीन चार व अंत में पाँच लाख का इनाम खुलने का कहा तो अध्यापक ने भी क्रमशः डेढ़, दो व अंत में ढाई लाख पादरी को देने की घोषणा कर दी। पादरी जिसे पाँच रुपये मिलने की भी आशा न थी, यकायक ढाई लाख रुपये मिलने की घोषणा सुन इतना खुश हुआ कि उसका हृदय प्रसन्नता से बढ़े रक्त चाप को बर्दाश्त नहीं कर सका और दूसरों को समझाने वाले पादरी महोदय वहीं ढेर हो गए। इस प्रकार “ममता" अनचाहे में भी प्राण हरण कर लेती है।
२.
शंकर प्रश्नोत्तरी से
(१३२)
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