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________________ उत्तरभारतीय प्रवर्तक श्री पद्मचन्दजी म.सा. की भावना स्मृति ग्रंथ की परम्परा में आप महासती श्री कानकुवंरजी म.सा एवं महासती श्री चम्पाकुवंरजी म.सा. की पावन स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए एक स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन कर रहे हैं। आप का यह कार्य प्रशंसनीय है। महासतीजी द्वय जीवनभर अहिंसा प्रेम और सेवा भाव का प्रचार करती रहीं। अज्ञान अंधकार को दूर करने का आदरणीया साध्वीजी द्वय ने अच्छा प्रयास किया था। आशा है, प्रकाशित होने वाला स्मृति ग्रंथ भी उनकी इसी कार्य प्रणाली को जीवन्त बनाने में सक्षम होगा। ऐसी भावना पूज्य गुरुदेव उ.भा. प्रवर्तकश्री जी. भा. ने प्रकट की है। प्रेषक-डॉ. सुव्रत मुनि. गनोर मंडी जिला सोनीपत विशिष्ट व्यक्तित्व की धनी • श्री अजित मुनि. रलताम (म.प्र.) आज आपकी ओर से आई प्रेस विज्ञप्ति के द्वारा ज्ञात हुआ कि वयोवृद्धा महासती श्रीकानकुवंरजी म. का ४ अगस्त ९१ को ससंथारा स्वर्गवास हो गया। सूचना से अत्यधिक हार्दिक खेद हुआ। ऐसे प्रसंग से मन की व्यथा सहज ही बढ़ जाती है। इसे साम्प्रदायिक संदर्भ में क्षति की स्थिति ही कहेंगे। काल ने अंततः अपनी क्रूर करनी में अपना पलड़ा भारी रखा। काल क्या जाने कि उसके ऐसे दुर्दीत वर्ताव से संघ समाज में कैसी रिक्तता व्यापेगी? इस घड़ी का स्वागत पूर्णतः अध्यात्मचेता प्राणी ही कर पाता है जो सतत जागृति बनाए रखे वे अत्मा ही जगति में धन्यवाद की पात्रता रखती है। मनसा/वाचा/ कर्मणा की त्रिपथगा पर जो ऊर्ध्वारोहित होकर शिवालय की शाश्वत अमरता में ज्योति लीन हो जाए। वही आत्मा हमारे लिए श्रद्धेय हो जाती है। संयम की महक से संवारना एवं स्वाध्याय प्रज्ञा से निरन्तर प्रक्षालन करना जिनका एकमात्र जीवन लक्ष्य है। पार्थिवता के प्रति निजसंगता एवं संसारिकता के प्रति निर्ममत्व भाव का सुन्दर प्रणयन हो ज्ञान/दर्शन/ चारित्र के त्रिगड़े पर जो शिखरायमान हो, सरल और सहजता जिन के सान्निध्य में विनम्रता के साथ सन्नद्व हो। आत्म संकल्प की गरिमा से जिनकी स्वर/गति ओत-प्रोत हो। जो जन मानस में बोधि ज्योति से जगमगाहट विकीर्ण कर दे। जो साधना की संबल निधि हो, बस ऐसी ही विशिष्ट व्यक्तित्व की धनी हमारी महासती श्री कानकुवंरजी म.थी। स्वर्गीया महासतीजी म.से ब्यावर/जावरा में दर्शन/वार्ता के अवसर आए। हर शब्द में आत्मीयता घुली रहती, हर व्यवहार में वात्सल्य रसान्विति रहती। हर आग्रह में अनुनय की महानता दर्शित होती। आपने विचरण की जिन लम्बी दूरियों को नाप कर छोटा बनाया, वह आपके अदम्य साहस/ उत्साह का प्रतीक है। आपके संयम साधना की षष्टि पूर्ति यह उजागर रूप से प्रमाणित करती है, कि जिन (१०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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