SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संदेश • प्रवर्तक श्री रूपचन्दजी म.सा. प्रकाशन का आयोजन उनका होता है जिनके जीवन में प्रेरक प्रसंगों की अधिकता हो ऐसा जीवन किसी का भी हो सकता है संत,सती श्रावक या सेवक। “महासती द्वय स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन एक ऐसा ही आयोजन है महासती द्वय प. श्री कानकंवर जी म. एवं स्व. श्री चम्पाकंवरजी म. का जीवन भी सेवा सरलता एवं सुविचता के त्रिवेणी संगम स्वरूप रहा, महासती द्वय ने अपने संयमी जीवन में जिन : शासन की महती प्रभावना की। उत्तर भारत मध्यभारत और दक्षिणी भारत का अधिकांश क्षेत्र महासती द्वय का विचरण क्षेत्र एवं धर्म कार्य क्षेत्र रहा। महासती द्वय स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन कार्य सफल हो, पाठकों को उक्त ग्रंथ से जन-जीवन उपयोगी सामग्री उपलब्ध हो इसी सद्भावना के साथ श्रमणी समुदाय की क्षति यहां पर जयगच्छाधिपति आचार्य कल्प श्री १००८ श्री शुभचंद्र जी म.सा. आगम विवेचक पं. र. श्री पार्श्वचंदजी म. सा. ठाणा ४ से सुख शांति पूर्वक चातुर्मास विराजमान है। आपको धर्म ध्यान करते रहने को फरमाया हैं। विशेष आज किसी दर्शनार्थी श्रावक से ज्ञात हुआ कि आपके वहां विराजित महासतीजी श्री कानकंवरजी काल धर्म को प्राप्त हो गये। महासतियाँजी पुरानी पीढ़ी की अनुभवी विचारशील श्रमणी थी। सरल प्रकृति की थी। श्रमणी समुदाय में क्षति हुई। यहां से गुरुदेव ने उनकी शिष्याओं से धैर्यपूर्वक उनके सद्गुणों की अनुगामी बना ज्ञान दर्शन चारित्र की अभिवृद्धि करने का संदेश फरमाया है। आप लोगों पर जिम्मेदारी का भार आ गया है। जिसे स्वविवेक द्वारा भलीभांति निभावें। पूर्वजों की धवल कीर्ति है उसे और अधिक बढ़ावों यही आप से अपेक्षा है। चातुर्मास सम्पन्न होने के पश्चात अधिक से अधिक मर्यादा पूर्वक विचरण करके जिनशासन की प्रभावना करें साथ ही सम्यक श्रद्धान वाले ज्ञान ध्यान की अभिवृद्धि करें। प्रेषक-विमलचंद सांखला सांडिया जिला पाली (राज.) (९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy