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________________ जिन शासन के महामंत्र नवकार से भी यह बात और अधिक स्पष्ट हो जाती है। उसमें किसी के पक्षपात नहीं किया गया है। किन्त गणों की मख्यता को आधार बना कर अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को नमस्कार किया है। इस प्रकार जिन और जिन शासन के प्रसंग में आवश्यक अंश पर प्रकार डालने के बाद अब उपसंहार के रूप में जिन शासन की लोक मंगल की भावना का संकेत करते हैं। जिनशासन की लोक मंगल भावना - जिन शासन के दृष्टिकोण में जितनी उदारता और विशालता की भावना है, उतनी ही लोक मंगल की कामना भी समाई हुई। प्राणिमात्र के कल्याण की कामना करते हुए सदैव यह चाहा- सर्व पूजा क्षेम कुशल पूर्वक सुख में अपना जीवन व्यतीत करें। शासक राजा धार्मिक आचार विचार वाले और बलशाली हो, जिससे स्वचक्र और परचक्र का भय न रहे समयानुसार मेघ वर्षा होती रहे। रोग महामारी का उत्पात न हों। सभी को शान्ति देने वाला जैनेन्द्र धर्म चक्र प्रवर्तमान रहे दिन दूना रात चौगुना प्रभावशाली हो जयवंता रहे। शास्त्राभ्यास के प्रति सभी की रुचि बढ़े। सज्जन पुरुषों की संगति का सबको सुयोग मिले। गुणीजनों के गुणानुवाद के स्वर कानों में गुंजते रहे। दोष दर्शन की कभी भी वृत्ति न हो। सबके साथ हित-मित प्रिय वाणी बोलने का ध्यान रहे और प्राणि-मात्र को आत्म विकास के अवसर प्राप्त हों, अपने परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करें। इस प्रकार की मांगलिक संपत्ति का निधान होने के कारण ही जिन शासन की उपादेयता और सार्वभौमिकता की सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है और विश्व शान्ति के लिए सर्वोत्तम साधन माना है। आशा है कि हम आप सभी जिन शासन के प्रति श्रद्धा भक्ति रखने वाले सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय जिन शासन के प्रसार में तत्पर रहकर - 'जैनं जयतु शासनम' के आदर्श को साकार बनाकर स्व पर के कल्याण के लिए मंगल प्रयास करें और अनन्त पुण्यों से प्राप्त इस मानव जीवन को सफल बनाये। इति शुभम् (२९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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