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________________ स्वाध्यायः एक अनुचिन्तन अनादि काल से मानव सुखेच्छु रहा है। सुगति की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रायस करता रहा है। अब प्रश्न उठता है कि सुख कैसे मिलता है सुगति कैसे प्राप्ति होती है ? इसके लिए भगवान कहते हैं कि • नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा। एए मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गईं ॥ उत्तरा २८/३ अर्थात् ज्ञान और दर्शन, चारित्र और तप रूप जो मार्ग है, उसका अनुशरण करके जीव सुगति को प्राप्त करते हैं। दशवेकालिक सूत्र में भगवान महावीर ने साधक के लिए ज्ञान प्राप्ति को प्रथम कर्तव्य प्रतिपादित किया है – “पढमं नाणं तओ दया.” दशवै. ४/१० । - डॉ. सुव्रत मुनि जिज्ञासा होती है कि ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? ज्ञान आत्मा का स्वाभाविक गुण है अनादि काल से एकत्र किए हुए अशुभ कर्मों के प्रभाव के कारण उस पर अज्ञान का आवरण आ गया है। बस उस अज्ञान के आवरण को हटाते ही ज्ञान प्रकट हो जाता है। अज्ञान का आवरण वह स्वाध्याय से टूटता है । यथा सज्झाएणं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेश, उत्तरा . २९/१९ Jain Education International स्वाध्याय से साधक ज्ञानावरणीय कर्म को क्षय करता है। यही कारण है कि चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र में स्वाध्याय को परम तप बतलाया है - नवि अत्थि नवि य होइ सज्झाएण समं तवो कम्मं । ८९ । स्वाध्याय से अनेक भवों के संचित दुष्कर्म क्षण भर में क्षीण हो जाते हैं। महर्षि पतञ्जलि ने तो यहाँ कहा कि -“स्वाध्यायादिष्ट देवता संप्रयोग": अर्थात् स्वाध्याय के द्वारा अभीष्ट देवता के साथ साक्षात्कार किया जा सकता है। स्वाध्याय साधना का प्राण है। इसीलिए स्वाध्याय के अभाव में साधना निर्जीव हो जाती है। स्वाध्याय ज्ञान का अक्षय निधान है। स्वाध्याय की प्रवृत्ति के कारण ही आज प्राचीन ज्ञान विज्ञान का अनुपम उपहार आज मानव जीवन में सुलभ है। इससे सिद्ध है कि स्वाध्याय ज्ञान के विकास का अनन्य साधन है। जो स्वाध्याय इतना महत्वपूर्ण है उसका क्या अर्थ है ? स्वाध्याय और अध्ययन में क्या अन्तर है ? सामान्यतया कुछ भी पढ़ना अध्ययन है । परन्तु स्वाध्याय इससे भिन्न है - स्वस्थ मन से सद्ग्रन्थों का अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है। आगम टीकाकार आचार्य श्री अभयदेव सूरि ने कहा है- सुष्ठु-आ मर्यादया अधीयते इतिस्वाध्यायः” । स्थानांग टीका ५/३ (30) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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