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________________ नैतिकता के पालन में आस्था व्यक्ति को सदाचरी तथा पारस्परिक सहनुभूति प्रदान में अग्रसर बनाती है उससे कर्तव्य निष्ठा का आनन्द प्राप्त होता है। नैतिकता की प्रवृत्तियाँ व्यक्ति के जीवन में सुख और सन्तोष का अमृत भी देती है और समाज के स्तर और गठन को सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित बनाती है। नैतिकता के आदर्शों के प्रति आस्थाएँ लड़खड़ाने पर व्यक्ति ही नहीं वह जाति भी अनैतिक कर्मों से स्वयंमेव चिन्तित, व्यथित और स्वार्थरायण बन जाती है फलतः सहयोग और उदारता की उन सभी प्रवृत्तियों का अन्त हो जाता है, जिनमें मनुष्य को कुछ त्याग और कष्ट उठाना पड़ता है। परिवार और समाज में नैतिकता के प्रति अनास्था का दुष्परिणाम नैतिकता की दृष्टि से सोचा जाए तो परिवार और समाज का ऋण व्यक्ति पर कम नहीं है। माता पिता और बुजुर्गों की सहायता से व्यक्ति का पालन-पोषण होता है, वह स्वावलम्बी बनता है, इस प्रकार व्यक्ति पर पितृ ऋण भी है। नैतिकता का तकाजा है कि पति-पत्नी दोनों में से किसी के प्रति अरुचि हो जाने पर भी उसकी पिछली सद्भावना और सत्कार्य के लिए ऋणी रहने तथा निबाहने को तत्पर रहना चाहिए। सन्तान के प्रति माता-पिता को और सन्तान का माता पिता के प्रति पूर्ण बफादारी और कर्तव्यनिष्ठा रखना आवश्यक है। मनुष्यमात्र में अपने जैसी ही आत्मा समझ कर न्याय, नीति, ईमानदारी, सहानुभूति और सद्भावना रखनी चाहिए। कर्मसिद्धान्त नैतिकता के इन सूत्रों के अनुसार आचरण करने, न करने का सुखद-दुःखद फल प्रायः हाथोहाथ बता देता है। भौतिकतावादी नैतिकता विसद्ध अतिस्वार्थी नैतिकता के इन आदर्शों के विरुद्ध वर्तमान भौतिकता की चकाचौंध में पलने वाले लोग सीधा यों ही कहने लगते हैं -“हमें परिवार से ,समाज से या माता-पिता से क्या मतलब? हम क्यों दूसरों के लिए कष्ट सहें? क्यों अपने आपको विपत्ति में डालें? ईश्वर, धर्म, नीति, परलोक, कर्म, कर्मफल, आदि सब ढोंग है, पूंजीपतियों और उनके एजेंटों की बकवास है। इनको मानने न मानने से कोई अन्तर नहीं पड़ता। इन्हें मानने से कोई भौतिक या आर्थिक लाभ नहीं है।" इस अनैतिकता का दूरगामी परिणाम ___इस अनैतिकता के प्रभाव की कुछ झांकी इंग्लैण्ड के प्रख्यात पत्र 'स्पेक्टेटर' में कुछ वर्षों पूर्व एक लेख में दी गई थी। उसमें उस देश के वृद्ध व्यक्तियों की दयनीय दशा का विवरण दिया था कि देश के अधिकांश वृद्धजन अपनी असमर्थ स्थिति में सन्तान की रत्तीभर भी सेवा, सहानुभूति नहीं पाते। अतः वे इस प्रकार करुण विलाप करते हैं कि हे भगवान्! किसी तरह मौत आ जाए तो चैन मिले। पर उनकी पुकार कोई भी नहीं सुनता। दुःखित-पीड़ित वृद्धजनों का यह वर्ग द्रुतगति से बढ़ता जा रहा है।" वृद्धों द्वारा आत्महत्या : उनकी ही अनैतिकता उन्हें ही भारी पड़ी 'कोरोनर' (लन्दन) के 'डॉक्टर मिलन' को पिछले दिनों ७०० दुर्घटनाग्रस्त मृतशवों का विश्लेषण करना पड़ा। उनमें एक तिहाई आत्महत्या के कारण मरे थे। इन आत्महत्या करने वालों में अधिकांश ऐसे बूढ़े लोग थे, जिन्हें बिना किसी सहायता के जीवन यापन भारी पड़ रहा था और उन्होंने इस तरह (११) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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