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________________ ७ मैनासुन्दरी एवं सुरसुन्दरी के कथानक अंधविश्वास एवं मिथ्या मान्यताओं को तोड़ते है। मैना-सुन्दरी कर्मवादी है और सुरसुन्दरी भाग्यवादी है। मैना से जब यह कह दिया जाता है कि हे बेटी, तेरा विवाह एक कोढ़ी से तय कर दिया गया है। तब वह कहती है माँ-बाप केवल विवाह करते हैं उसके बाद तो कन्या का अपना कर्म ही काम आता है। हे पिता जी, जीव कर्म से ईश्वर होता है, कर्म से रंक होता है, जो अपने ललाट पर लिखा है उसे कौन मेट सकता है। वह विधि का विधान है। मैना अपने अन्तः भरण से धर्मनिष्ठ है। वह समाज के लिए एक आदर्श है। जो दिखला देना चाहती है कि राजा भी कभी रंक हो सकता है। दुःखी भी कभी सुखी हो सकता है। भारतीय समाज में नारी कभी क्रीत दासी भी रही। वह कभी चेरी, दासी, लोंड़ी बांदी, गोली, दूती, सेविका एवं धाय आदि के नामों से जानी जाती थी। परन्तु उनकी सेवा एवं धार्मिक भाव सदैव विद्यमान रहा। समाज में अनेक प्रकार की बौद्धिक विचार वाली नारियाँ हैं तो दूसरी ओर अंध विश्वासों से युक्त नारियाँ हैं। हमारे समाज में मूल रूप से जादू टोना, सम्मोहन, बशीकरण, उच्चाटन, मणि, मंत्र, एवं तंत्र प्रचलित है। पर ये सभी बातें इस छोटी सी पंक्ति से निराधार हो जाती है। मणिमंत्र तंत्र, बहु होई, मरते न बचावे कोई। वेदों में नारियों के सोलह रूप बताये हैं। जो ज्ञान और साधना को अपनाती थी। लोपामुद्रा, घोषा, अपाला वैदिक ऋचाओं में प्रसिद्ध हुई। जिन्हें समाज का उच्च आदर्श प्राप्त हुआ उन्होंने मिथ्या मान्यताओं से परे होकर व्रतसाधना पर विशेष बल दिया। रामायण, महाभारत की आदर्श नारियाँ उस युग की गाथा को कहती हैं, मीरा समाज के बंधनों को तोड़ देती है। दुर्गावती, चाँदवीबी, ताराबाई, अहिल्याबाई, झाँसी की रानी, क्रान्ति की शिक्षा देती है। इसी बात पर मनु ने नारी की महानता को स्वीकार किया और कहा है - पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने। रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्रय मर्हति नारी का कर्त्तव्य परिवार को सुखी बनाने में सहायक होता है बुद्ध और महावीर के बाद अंधविश्वासों एवं मिथ्या मान्यताओं से लड़ती नारियाँ देखी जा सकती हैं। बुद्ध की मौसी के साथ पांच सौ नारियों ने दीक्षा ली। धर्म प्रचार किया, विम्बसार की रानी क्षेमा, श्रेष्ठि पुत्री भद्रा, कुण्डलकेसा, आम्रपाली, विशाखा आदि ने अपने समय में क्रान्तिकारी कदम उठाया। विशाखा, बसंतसेना आदि ने समाज को नई दिशा दी और नारी के लिए पतिव्रत धर्म के साथ-साथ त्याग तपस्या को बल मिला। नारी को शिक्षित करने का अर्थ है पुरुष को शिक्षित करना, परिवार को शिक्षित करना, कुटुम्ब को शिक्षित करना. समाज को शिक्षित करना है। नारी अशिक्षा के अभाव में नारी, अन्धविश्वासों में जकड वह कभी जाट टोना करती है. कभी ताबीज बांधती है. कभी डोरा डंगा बांधती है. और कभी मंत्र और तंत्र में लीन हो जाती है। यह सब इसलिए करती है कि शायद इससे कुछ प्राप्ति हो जाये। परन्तु सच्चाई यह है कि नारी इन अंध विश्वासों में पड़कर अपना मानसिक संतुलन खो बैठती है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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