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________________ 38666666608600000000036 8620865588806003088888888885600200acodikicoaldassssssssssssssssssmatc000000owwwdioscowdsddessess अंध विश्वास निवारण में नारी की भूमिका 28deodesd80885600206820866608888883863396 • श्रीमती माया जैन accoccdcodacoolssssssssssdecixceliedoesxc00000000000038086608888888888888888 इस शीर्षक से संबंधित पहली बात नारी की पृष्ठभूमि, दूसरी बात अंधविश्वास एवं कुप्रथा तथा मिथ्या मान्यताओं से संबंधित मैं तीसरी बात व्यक्त करुंगी। हमारी भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सभी को समान स्थान एवं समान अधिकार प्राप्त हैं। जिस तरह हमारी मातृभूमि सहिष्णु मानी गई है उतनी ही सहिष्णु नारी है। नारी सेवा रूपा और करुणा रूपा है। सेवा सुश्रुषा और परिचर्या दया, ममता, आदि के विषय में जब विचार किया जाता है तो हमारी दृष्टि नारी समाज पर जाती है। उसकी मोहक आंखों में करुणारूपी ममता का जल और आँचल में पोषक संजीविनी देखी जा सकती है। कुटुम्ब, परिवार, देश, राष्ट्र, युद्ध, शांति, क्रान्ति, भ्रान्ति, अंधविश्वास, मिथ्या मान्यताओं जैसी स्थितियाँ क्यों न रही हो। नारी सदैव लड़ती रही और अपने साहस का परिचय देती रही। पर दुःखों को, भारी कार्यों को उठाने वाली क्रेन नहीं है। परन्तु वह इनसे लड़ने वाली एवं निरंतर चलती रहने वाले आरी अवश्य है। मैले आँचल में दुनिया भर के दुःख समेट लेना उसकी महानता है। विलखते हुए शिशु को अपनी छाती से लगा लेना उसका धर्म है. वह सभी प्रकार के वातावरणों में घुलमिल जाने वाली मधुरभाषिणी एवं धार्मिक श्रद्धा से पूर्ण है। विश्व के इतिहास के पृष्ठों पर जब हमारी दृष्टि जाती है तब ग्रामीण संस्कृति में पलने वाली नारी चक्की, चूल्हे के साथ छाछ को विलोती नजर आती है और संध्या के समय वही अंधेरी रात में रोशनी का दीपक प्रज्ज्वलित करती है। हर पल, हर क्षण, नित्य नये विचारों में डूबी हुई रक्षण पोषण में लगी हुई। अंधविश्वासों से लड़ती हुई नजर आती है। जब वह अपने जीवन के अमूल्य समय को सेवा में व्यतीत कर देती है तब उसे अंध विश्वास एवं मिथ्या मान्यताओं से कोई लेना-देना नहीं होता है। उसका सबसे बड़ा विश्वास है आदि पुरुष, आदिनाथ की ब्राह्मी एवं सुन्दरी जैसी कन्याओं की तरह धार्मिक संस्कारों से युक्त होकर समाज की सेवा करते रहना है। क्योंकि कन्या की धार्मिक भावना पिता के गृह की अपेक्षा अपने पति के गृह में प्रवेश करके स्वच्छ वातावरण को उत्पन्न करना चाहती है। जहाँ ब्राह्मी और सुन्दरी ने नारी के मनोबल को ऊँचा उठाया वहीं दूसरी ओर सभी तीर्थंकरों की माताओं को विस्मृत नहीं किया जा सकता है। सभी तीर्थंकरो की मातायें क्षत्रिय कन्यायें थी। स्वयं तीर्थकर भी क्षत्रिय थे। क्षत्रिय धर्मबल को प्रदर्शित करने वाला होता है पर धर्मबल भी उन्हीं में रहा। राजुल ने परिवार एवं समाज की चिन्ता न करते हुए एक ऐसे रास्ते को अपनाया, जिस रास्ते पर चलना बड़ा कठिन समझा जाता था। समस्यायें और जगह-जगह कष्टों को झेलना पड़ा पर उन कष्टों की चिन्ता न करते हुए वह मुक्ति पथ की खोज में लगी रही। चन्दना ने समाज में नई जागृति पैदा की और कुन्दकुन्द की माता ने कुन्दकुन्द को महान सिद्धांतवादी एवं आध्यात्मवादी बना दिया। (४७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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