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________________ पूर्ण स्वस्थ था। किसी प्रकार की रुग्णता का कोई चिह्न दिखाई नहीं देता था न ही किसी प्रकार की शिथिलता प्रकट हुई थी। यथार्थ तो यथार्थ ही था। कल्पना की कोमल धरा किस काम की। पू. परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुंवर जी म.सा काल धर्म को प्राप्त हो गये। क्रूर काल ने उन्हें असमय ही अपना ग्रास बना लिया। इस कठोर सत्य को तो मानना ही पड़ा। मानव अपने मन की चाहता है पर भावी अपने मन की करके मानती है। हमारी जिज्ञासा यह थी कि यह अनहोनी कैसे हो गई ? पू. गुरुवर्या श्री तो एकदम स्वस्थ थी। फिर एकाएक ऐसा कौनसा रोग हो गया कि वे अचानक काल कवलित हो गयी। इस सम्बन्ध में मद्रास से जो जानकारी मिली उसके अनुसार पू. गुरुवर्या श्री ने सायंकाल प्रतिक्रमण किया बहनों को भजन, चौबीसी, स्वास्याय आदि सुनाया। लगभग आठ साढ़े आठ बजे वे बड़े म.सा. के पेशाब पराठने गये और तभी अचानक उनके सिर में दर्द होने लगा बड़ी मुश्किल से आकर पाट पर बैठ गये। उन्होंने साध्वी श्री सुमन सुधा जी से कहा कि उनके सिर में दर्द हो रहा है। साध्वी श्री सुमन सुधा जी म. प. गरुवाश्री का सिर दबाने लगी, किन्तु इससे कोई आराम नहीं मिला कुछ ही क्षणोपरांत उन्हें उल्टियाँ होने लगी। आपकी ऐसी हालत को देखकर महासती श्री बंसत कुंवर जी म.सा. ने वहाँ उपस्थित बहनों को पुकारा और उन्हें पू. गुरुवर्याश्री की अस्वस्थावस्था की जानकारी दी। कुछ ही समय में आपकी अस्वस्थता का समाचार साहुकार पेठ में फैल गया और लोढ़ा परिवार सुराणा परिवार, गेलड़ा परिवार आदि सभी तत्काल आ गये और डॉ. पी.सी सुराणा को भी बुला लिया गया। डॉ. सुराणा ने देखा, इंजेक्शन लगाये और बताया कि महासतीजी को ब्रेन हेमरेज हो गया है। पू. गुरुवर्या की हालत गंभीर थी। उपस्थित व्यक्ति कहने लगे कि पताल ले जाये। इस पर डॉ. सुराणा ने कहा कि ऐसी स्थिति में अस्पताल ले जाना बड़ा कठिन है। गुरुवर्याश्री के मुख से अरिहंत देव, अरिहंत देव की ध्वनि निकल रही थी। इसके साथ ही आपने फरमाया कि उन्हें संथारा करवा दिया जावे। गरुवर्य्याश्री के ये शब्द सनते ही प. दाद गरुवर्याश्री कानकंवर जी म. सा की आँखों में अश्रु आ गए। मेरे ही समक्ष मेरी शिष्या जा रही है। ऐसा विचार आते ही वे भावविभोर हो गई। अंतत: पू. गुरुवर्या श्री को संस्यारा करवा दिया गया। स्थानक के नीचे आचार्यश्री की आज्ञानुवर्ती साध्वीजी श्री अजित कुंवरजी म.सा ठहरी हुई थी। वे भी ऊपर आ गयी और आपश्री को स्वाध्याय-आलोचना आदि सुनाने लगे। सभी बहनें भी अश्रुपूरित नेत्रों से रो रही थी कि जिनके साथ चार वर्षों से रहकर धर्म ध्यान कर रही थी और कई इनके साथ बाल्यकाल मे साथ-साथ खेली थी, पढ़ी थी आज वे ही हमे छोड़ कर जा रही है। यह कैसी अनहोनी हो रही है। डॉ. सुराणा ने बहुत प्रयास किये। सेवा की वह अत्यंत सराहनीय है। डॉ. सुराणा भी गुरुवर्याश्री को काल के क्रूर पंजों से बचाने में असमर्थ रहे। उनेक अंतिम समय में दाद गुरुवर्याश्री ने पूछा- चम्पा । तुम्हे कैसा लग रहा है। अब स्वास्थ्य कैसा है?" पू. गुरुवर्याश्री ने अपने सिर की ओर संकेत कर बताया कि दर्ज असदह्य है। उन्होंने में अपने अंतिम समय में पाँच बार जोर-जोर से अरिहंता का शारणा अरिहंता का शरणा कहा। जब अंतिम श्वास निकली तब भी उनके मख से अरिहंता का शरणा की ध्वनि निकली। इसके साथ ही प्राण उड़ गए। दिव्य ज्योति अनन्त में विलीन हो गई और रह गई मात्र उनकी पार्थिक देह गुरुवर्याश्री सबसे मुख मोड़ कर सबको बिलखता छोड़कर चले गये। ज्योति बुझ चुकी थी। रात्रि के ग्यारह बजकर पैता मिनिट पर पू. गुरुवर्याश्री चिर निद्रा में लीन हो गयी। वे ममत्व के समस्त बंधन तोड़ चुकी थी। अपने अंतिम समय में (६७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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