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________________ हूं-चंद्रा मैं जा रही हूं।” कुछ समय के लिये प्रकाश हुआ, मैं कुछ समझ नहीं पाई । मैं उठी और दरवाजा खोलने लगी। श्री कंचनकुवंरजी म.सा. जाग रही थी। उन्होंने कहा “रात्रि के समय जंगल में दरवाजा नहीं खोलना” मैने अपनी अनुभूति जस की तस उसी समय उन्हें बता दी। रातभर आँखों में ही व्यतीत हो गई। नींद बिलकुल नहीं आई। मन उदास हो गया। बड़ी कठिनाई से जैसे तैसे रात्रि बीती । विहार का समय आ गया, किंतु आज पैरों में २५ कि.मी. विहार करने की शक्ति का अभाव महसूस कर रही थी। विहार कैसे होगा? क्या करूं? कुछ क्षणों तक विचार करती रही। मैने उसी क्षण पू.गुरुवर्य्याश्री का स्मरण किया। मार्ग में आज विश्राम नहीं करना है। आज सीधे मेलूर जाकर ही. उसी स्थान पर रुकना है जहां मुकान करना है। गुरु कृपा से पैरों में शक्ति आ गई । विहार कर दिया और लगातार चलती रही। अपने गंतव्य की और अपने संकल्प के अनुसार मेलूर गेस्ट हाऊस में पहुंचकर ही विश्राम किया। लगभग ग्यारह बजे मेलूर पहुंचे थे। सभी आहार पानी कर चुके थे। मेरा मन कुछ भी ग्रहण करने को नहीं कर रहा था। इसलिये मना कर दिया। इस पर श्री कंचनकुंवरजी म.सा. ने कहा कि तुमने कल भी कुछ नहीं लिया था। जोभी इच्छा हो, जिनता भी ग्रहण कर सको ले लो। कुछ नहीं खाने से शरीर की शक्ति क्षीण होती है। मैं गौचरी करने बैठी। कुछ भी खाने का मन नहीं हो रहा था। बड़ी कठिनाई से आधी रोटी खा पाई और उठ गई। मैने महासती जी से कहा कि मैं वृक्ष के नीचे वहीं जाकर लेटना चाहती हूं, कल रात्रि में भी बिलकुल भी नींद नहीं आ पाई थी। सिर में भी दर्द हो रहा है। इतना कह कर मैं वृक्ष के नीचे जाकर लेट गई। पर यहाँ भी नींद कहाँ। विचार प्रवाह में गोते लगने लगे। पू गुरुवर्या श्री की स्मृति आने लगी। एकाएक आँखों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लगी। इस समय पू. गुरुवर्या से मैं काफी दूर थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है और क्या करना है। लगभग तीन बजे मदुरै से रमणिक भाई गुजराती दर्शन करने के लिए आये। वंदना करने के पश्चात् उन्होंने पूछा “आपके गुरुजी कौने है? उनका नाम क्या है?" हमने एक स्वर में कहा कि आप ऐसा क्यों पूछ रहे है? इस पर उन्होंने कहा कि मद्रास से फोन आया है कि वहाँ एक महासती जी काल धर्म को प्राप्त हो गये है। हमने कहा कि बड़े महासती जी श्री कानकुवंर जी म.सा है। रमणिक भाई को इस नाम से समाधान नहीं मिला। उन्होने पुनः पछा कि और क्या नाम है? मैंने कहा “हमारे गुरुवर्या प. महासती श्री चम्पाकुंवर जी म.सा है" रमणिक भाई ने तत्काल कहा “ बस, वे ही काल कर गये।" सभी ने एक साथ कहा कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता। आपने गलत सुना होगा। पू. गुरुवर्या तो स्वस्थ थे। हाँ, बड़े म.सा अवश्य अस्वस्थ रहते है। हमारी बात सुनकर रमणिक भाई ने कहा कि वे अभी मद्रास के लिए ट्रंक काल बुक कराकर आए है। थोड़ी दर के बात पुन: समाचार देने का कह कर वे चले गए। हम चारों स्तब्ध थीं। समय बीत नहीं रहा था। एक-एक मिनिट व्यतीत करना कठिन हो रहा था। मन की बेचैनी और अधिक बढ़ गई थी। कुछ देर बाद रमणिक भाई आए और बोले कि मद्रास में बाजार बंद है। किसी के घर में कोई नहीं है। सभी महासतीजी के अंतिम दर्शन करने में लिए गए हुए है और उनका अंतिम संस्कार भी आज ही किया जा रहा है। इस समाचार को सुनते ही मन व्यथित हो गया। हमारे आराध्य गुरुवर्या श्री हम से दूर हो गये। दूर क्या हो गये, सदा-सदा के लिए हम से अलग चले गये। अब हमारा सहारा नहीं रहा। वेदना से हम सब विचलित हो गये। मेरा हृदय हाहाकार करने लगा। क्या सोचा था और क्या हो गया। स्वप में भी किसी को ऐसी कल्पना नहीं थी कि पू. गुरुवर्या श्री का स्वर्गवास इतनी जल्दी हो जायगा। उनका शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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