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________________ भरे थे। दीक्षा में बाधा डालने वाले भी आश्चर्यचकित थे। उन्हें आज अपनी भूल का अहसास हो रहा था। सभी के कानों में पंडित जी के शब्द गूंज रहे थे। यह बाला महासती बनकर विश्व को प्रकाश देगी ।प्रवचन के समय तो जनता उमड़ पड़ती थी ।विशाल उपाश्रय का प्रवचन कक्ष खचाखच भर जाता। अनेक श्रद्धालु प्रवचन कक्ष के बाहर खड़े रहकर ही प्रवचन श्रवण का लाभ लेते थे। सम्पूर्ण प्रवचनावधि में पूर्ण शांति रहा करती थी। आपके प्रवचन यथार्थ सटीक होते थे, जिन्हें सुनकर स्थानकवासी, मंदिर मार्गी तथा जैनेतर समाज के व्यक्ति भी प्रभावित होते थे। सभी धर्मावलम्बी एक ही भवन में एक ही साथ बैठकर प्रवचन पीयूष का पान करते थे। आपके प्रेम भाव ने सबके अस्त हृदय दीपों में स्नेह का तेल डालकर उन्हें प्रज्ज्वलित कर दिया था। कटंगी में प्रेम की स्नेह की सरिता सम्पूर्ण वर्षावास काल में बहती रही। वर्षावास के समय कटंगी वासी अपने सद्भाग्य पर फूले नहीं समा रहे थे। समय समय कटंगी में जय जयकारों से गगन गूंजता रहता था। जब आप कटंगी के मार्गों पर चलती तो कटंगी की जनता अपने हाथों में खिलाई चम्पा को इस अद्भुत रूप में देखकर हर्षित हो जाती थी। उनकी प्रसन्नता असीम हो जाती थी। ऐसे भावभीने वातावरण में चार मास का समय पलक झपकते समाप्त हो गया। प्यास बुझी नहीं थी, और अमृत वर्षा करने वाला मेघ प्रस्थान करने की तैयारी में था। जनता में बड़ी आकुलता-व्याकुलता से आंचल पकड़ने का प्रयास किया, किन्तु मेघ को कब और कौन पकड़ने में समर्थ हो सका है। संयोग वियोग की मधुर अभिव्यक्तियों के बीच आपने कटंगी से विहार की तैयारियां कर दी। सभी का हृदय विव्हल हो उठे। आँसुओं की बाढ़ आ गई। पर श्रमण मर्यादा में बंधी माया ममता में अलिप्त उनकी यह धरोहर अब किसी भी प्रकार रूक नहीं सकती थी। सभी उदास मन भीगी पलकों से आपका गमन पथ विवश होकर निहारने लगे। आपके चरण छत्तीसगढ़ की ओर बढ़ गए। दुर्ग वर्षावास- कटंगी वर्षावास के समय आपकी सेवा में दुर्ग श्री संघ उपस्थित हुआ था और दुर्ग पधारने की अपनी आग्रह भरी विनती प्रस्तुत की थी। दुर्ग श्री संघ की ऐसी विनती काफी वर्षों से होती आ रही थी। यह भावना भी आपके ध्यान में थी। कटंगी से विहार कर आप बालाघाट, चांगाटोला, गोंदिया तथा अनेक छोटे-छोटे ग्रामों को अपनी चरण रज से पावन करते हुए और जैन धर्म का प्रचार करते हुए आपका पदार्पण राजनांदगांव में हुआ। विचरणकाल में विभिन्न ग्राम नगरों में श्रीसंघ, दुर्ग आपकी सेवा में दर्शन करने और प्रवचन श्रवण हेतु उपस्थित होता रहा तथा दुर्ग पधारने के लिये भी बराबर विनती करता रहा। श्री संघ, दुर्ग की प्रबल भावना को देखकर उसे वर्षावास करवाने की स्वीकृति मिल गई। अपनी वर्षों पुरानी भावना की पूर्ति होते देख श्री संघ, दुर्ग की प्रसन्नता असीम हो गई। इस स्वीकृति के मिलते ही जैनधर्म की जय, भगवान महावीर की जय, युवाचार्य श्री मधुकर मुनि की जय, महासतियां जी की जय के निनादों से श्री संघ, दुर्ग ने गगन गुंजा दिया। दुर्ग की जनता ने भी जब यह समाचार सुना तो वहां भी हर्षोल्लास की लहर फैल गई। वर्षावास के लिए दुर्ग में आपका प्रवेश धूमधाम के साथ हुआ। इसके साथ ही दुर्ग में धर्म ध्यान के कार्यक्रम आरम्भ हो गए। चातुर्मास काल में प्रातः नित्य प्रवचन होते, दोपहर में भाई-बहनों के साथ तत्व चर्चा होती। दुर्ग की जनता धार्मिक संस्कारों वाली होने के कारण धर्म क्रियाओं में सभी वय के व्यक्ति सम्मिलित होते थे। इस वर्षावास की एक उपलब्धि यह रही कि इसमें तपस्यायें अच्छी हुई। महासती श्री (५५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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