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________________ . स्व-पर कल्याण की भावना से निरुत्तर अन्तर बाह्य गतिशील मुनि का जीवन ही प्रतिपल आत्म विश्वास की ओर बढ़ता है और यही उत्तम मुनि जीवन है। अतः भगवान महावीर ने क्षेत्र अप्रतिबद्ध होकर ही सतत विचरण करने की आज्ञा मुनि को दी है। किसी भी क्षेत्र में अधिक निवास राग या बंधन का अनादर अवहेलना का कारण होता है। इससे साधक के संयम में शिथिल होने की अत्यधिक संभावना रहती “बहता पानी निर्मल कभी न गन्दला होय” प्रवाहित नीर निर्मल, स्वच्छ और शुद्ध होता है। उसी प्रकार घूमता फिरता मुनि ही शुद्ध, पवित्र, निष्कलंक रह सकता है। रूके हुए जल में जिस प्रकार विकार आ हैं. उसी प्रकार एक ही स्थान में निवास करने वाले मनि का मन मोह में बंध जाता है। संयम मलिन हो जाता है। अतः मुनि को स्थिरवास की आज्ञा भगवान ने बहुत ही विशेष कारण अर्थात् शरीर अशक्त होने पर ही करने की दी हैं। विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों, प्रवचनों आदि के साथ वर्षावास की अवधि कब समाप्त हो गई। यह कटंगी के निवासियों को पता ही नहीं चला और वर्षावास के पश्चात् कटंगी से विहार करने का समय आ गया। कटंगी की जनात आज उदास खड़ी अपने प्रकाश का गमन पथ निहार रही थी। उनका सीमित प्रकाश आज असीम की ओर अग्रसर हो रहा था । फुदकती हुई पुल्कित गात नन्हीं सी चम्पा आज महान साध्वी श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. बनकर चली जा रही थीं। अपने संयम की पगडंडी पर ।यो तो आपकी जन्मभूमि कुचेरा ही है, पर आपका परिवार कटंगीवासी होने से आप कटंगी की भी है कटंगी के हर्ष की क्या कहें। जिस बालिका को धूल में खेलते हुए देखा, आंखों के सामने बढ़ते हुए देखा, अपने हाथों साध्वी वेश से सजा कर जिसे भगवान महावीर के शासन को भेंट किया। आज वहीं छोटी सी सबकी प्यारी चम्पा, वीतराग भगवान की ज्ञान प्रदीप्त मशाल लेकर, अज्ञानांधकाराच्छादित हृदयों में ज्ञान की रोशनी भरने के लिए देवी के समान शोभित हो कर आयी है। कटंगी की भूमि खिल उठी। वहां का कण कण नाचने लगा, बच्चा-बच्चा उल्लास एवं उत्साह से थिरक उठा। सारा नगर हर्ष विभोर हो अपने यहां की परम पावन साधिका के दर्शनार्थ उमड़ पड़ा। चारों ओर विस्मय की ध्वनियां सुनाई देने लगी। चम्पा कौनसी है? क्या यही चम्पा है ? इतनी बड़ी हो गई। धूल में खेलने वाली चम्पा यही हैं ? वाह ! नगर का नाम उज्ज्वल कर दिया। हम धन्य हो गये. नगर का नाम भी इनके नाम के साथ अमर हो गया। नगर के लोग प्रसन्न हो रहे थे। सुराणा परिवार की प्रसन्नता का क्या पूछना? पिता श्री फूसालाल जी अपनी लाड़ली बेटी को निहार रहे थे. आज उनकी बेटी महान विभूति के रूप में पधारी थी। परन्तु माताजी आज अपनी पुत्री चम्पा की शोभा वैदुष्य और प्रभाव देखने के लिये इस संसार में नहीं थी। वे होती तो कितनी प्रसन्न होती । कहा नहीं जा सकता। किशोर वय की चम्पा के प्रखर तेज, प्रतापी पराक्रम का अवलोकन तो वे कर चुके थे। आज वही बाला विचक्षणता की साक्षात् प्रतिमा सौम्य ज्ञान की सरिता बनकर औजस्वी प्रभा से देदीप्यमान सामने खड़ी थी। बाल, वृद्ध, तरुण सभी. हर्ष मिश्रित आश्चर्य से स्तब्ध बने सामने खड़े थे। परम पावन जिन शासन को भेंट आज जिन वाणी का अमत बरसा रही थी। कटंगी का हृदय भक्ति भावनाओं से ओत प्रोत था। फिर भी उनके मन के अरमान अधरे ही थे। अंत तक वे यही कहते रहे कि हम कछ भी नहीं कर पाये। अपनी प्यारी चम्पा के स्वागत में हमसे कुछ भी नहीं बन पाया। सभी के हृदय स्नेहपूर्ण भावनाओं से (५४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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