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________________ ही था। वर्षो से गुरुवर्य्या के पिताश्री एवं समस्त परिवार की प्रबल भावना थी कि आपका वर्षावास कटंगी मध्यप्रदेश में हो। वे प्रतिवर्ष दर्शनार्थ आते और अपनी भाव भरी विनती प्रस्तुत करते । पाली वर्षावास के समय श्रीसंघ, कटंगी दर्शन करने के लिये पाली मारवाड़ आया पाली पहुंचकर श्री संघ, कटंगी ने पू. उपप्रवर्तक स्वामी जी म.सा. एवं पू. श्री युवाचार्य श्री जी की सेवा में अपनी विनती रखी कि कृपा कर महासती जी को कटंगी की ओर विहार करने की आज्ञा प्रदान कर हमारी वर्षो पुरानी भावना की पूर्ति करने की कृपा करें । पू. गुरुवर्य्या के पिताश्री एवं श्रीसंघ कटंगी की भावना को ध्यान में रखते हुए गुरु भगवंतों ने वर्षावास के पश्चात् महासतियां जी को कटंगी की ओर विहार करने की आज्ञा प्रदान कर दी। इस आज्ञा से श्रीसंघ कटंगी की प्रसन्नता की सीमा नहीं रही। उसी समय जय जयकारों से गगन गुंजा दिया। वर्षावास समाप्त हुआ और दाद गुरुवर्य्या एवं गुरुवर्य्या आदि महासतियां जी ने पाली से कटंगी के लिये विहार कर दिया। जब राणावास पधारी तो वहां पू. मरुधर केशरी श्री मिश्रीलालजी म.सा. से मांगलिक श्रवण कर वहां से आगे कदम बढ़ाये। मारवाड़, मेवाड़, मालवा तथा मध्यप्रदेश के विभिन्न ग्राम नगरों में धर्म प्रचार करते हुए आपश्री का कटंगी में पदार्पण हुआ । आपके कटंगी पदार्पण से यहां के जन जन के मन आनन्द एवं खुशी से नाच उठे । दीक्षा के पश्चात् आप उस भूमि पर पधारी जहां खेली, पली और बढ़ी हुई। सब कुछ तो जाना पहचाना था। श्रीसंघ कटंगी के आग्रह को स्वीकार कर वि. सं. २०३५ का वर्षावास कटंगी में किया। कटंगी वर्षावास- दाद गुरुवर्य्या महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. गुरुवर्य्या महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. आदि का वर्षावास कटंगी में होने से कटंगी में हर्ष और उत्साह का अच्छा वातावरण बन गया । वर्षावास की अवधि में धर्मध्यान का ठाट लग गया। कटंगी वासियों ने अपने नगर में पली और बड़ी हुई बालिका को एक होनहार साध्वी के रूप में देखा तो उनका यह आनंद असीम हो गया । 1 कल जब प्रस्फुटित होने लगती है । तब उसकी मन्द मन्द सुगन्ध पवन के साथ फैलने लगती है जैन शासन की महकती कली अपनी पंखुड़ियां पसार कर सुरभित पुष्प का रूप प्राप्त कर रही थी । इस समय आपका यशोगान अनेक स्थानों में होने लगा था । आध्यात्मिक शक्तियां विकसित होकर जगत ज्ञानालोक फैलाने लगी थी। जीवन का मध्यान्ह, तरुणाई, ज्ञान, तप, ध्यान, त्याग प्रतीक आनन पर वैराग्य की अरुणाई परम पवित्र, अलौकिक तेजस्विता दर्शक के हृदय को सात्विक श्रद्धा से ओतप्रोत कर चरणों में नतमस्तक होने के लिए विवश करती थी। जनता आपश्री के प्रवचन सुनकर मंत्र मुग्ध हो आपके शब्द लालित्य में खो जाती I व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करने के वैसे तो कई साधन हो सकते हैं किन्तु दो साधन महत्वपूर्ण हैं- (१) लेखन व (२) वक्तृत्वकला ।' लेखनी भावों को स्थायित्व प्रदान करती है । वाणी में तात्कालिक जादू के समान असर चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न करता है । आपकी वाणी का जादू चलना शुरू हुआ तो वह जनता को मंत्र मुग्ध कर देता था । आप जन सामान्य की भाषा में सरल एवं नपे तुले शब्दों में जनता के मन की बातें करने में कुशल थी। शब्दों में कही क्लिष्टता नहीं, थोथे पांडित्य का प्रदर्शन नहीं । जैसी सभा वैसी बात आपकी विशेषता थी । गाँवों में रुकती थी तो कहानियों का खजाना खोल कर रख देती थी। अपनी इन कहानियों के माध्यम से ग्रामीणों को व्यसन मुक्त बना देती थी। पंडितों की सभा में पंडिताई में पीछे नहीं रहती । आपके सदुपदेश से अनेक व्यक्ति तम्बाखू, मद्य, मांस पर-स्त्रीगमन, द्यूत आदि व्यसनों का त्याग कर सन्मार्ग पर आये । यह आपके उपदेश का सकारात्मक पक्ष था । Jain Education International (५३) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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