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________________ लिया। टीक्षा के विजय पाने वाले शक्तिशाली वैज्ञानिक एक ही बम विस्फोट से बड़े-बड़े शहरों को श्मशान बनाने की शक्ति रखने वाले महारथियों की गर्दन पर इसकी तलवार लटकती रहती है। इसके सामने अद्यपर्यंत सभी शक्तियां लाचार है। जगत के सभी पदार्थों का गत्यावरोध संभव है, पर इसका चक्र तो अबाध गति से प्राणिमात्र के सिर पर निरन्तर घूम रहा है। प.श्री तलछा जी म.सा. कुचेरा में स्थिरवास थी। आपकी सेवा में रहकर पू. गरुवर्या श्री चम्पाकंवरजी म.सा. ज्ञानार्जन में लगी रही। जैसा कि पर्व में बताया जा चका है कि प. महासती श्री तुलछा जी म.सा. स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.सा. की माताजी थीं। गुरुवर्याश्री उनकी सेवा में सदैव तत्पर बनी रहती। गुरुणी जी की सेवा में कब दिन बीतता, कब रात व्यतीत होती कुछ पता ही नहीं चल पाता। पू. महासती श्री तुलछाजी म. की अस्वस्थता एकाएक बढ़ गई। सभी प्रकार की उपचार सुविधायें उपलब्ध करवाई गई। किन्तु सब कुछ व्यर्थ रहा। कोई भी शक्ति सबके आराध्य, परमोपास्य गुरुणी जी म.सा. श्री तुलछा जी को नहीं बचा सकी। अंतिम घड़ी आ ही गई। कहा भी गया है कि टूटी की बूटी नहीं है। जैन शासन की श्रृंगार महासती श्री तुलछा जी म.सा. ने नश्वर देह का त्याग कर स्वर्गभूमि की ओर प्रयाण किया। कुचेरा संघ में अंधकार हो गया। बच्चा-बच्चा शोकाकुल हो गया। गुरुवर्या श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. के शोक की तो सीमा ही नहीं थी। जिनके सान्निध्य में रहकर बहुत कुछ सीखा, आज उनकी ही कृपा से वंचित हो गई। आपके हृदय पर गहरा आघात लगा। इस आघात को अभी गुरुवर्याश्री भूल भी नहीं पाई थी कि कुछ ही समय पश्चात् ज्ञानदात्री गुरुणी जी पू. महासती श्री जमना जी म.सा. का भी स्वर्गवास हो गया। यह आपके लिये आघात पर आघात था, वज्राघात था। उस समय आपके हृदय में हाहाकार मच गया। दोनों वरिष्ठ गरुणी के पावन सान्निध्य में आप केवल सात-आठ वर्ष ही रह पाई। अभी आप संयमी जीवन की शैशवावस्था में ही थी। शिशु सम्भल भी नहीं पाया था कि विधि कहें या कर्मगति ने वात्सल्य भरा मां का हाथ सिर से उठा लिया अवसर पर स्वजनों का त्याग, माता-पिता का वात्सल्य जिसे विचलित नहीं कर पाया, वही दृढ़ मानसी आज अपनी गुरुणी जी के वियोग से मोम की भांति पिघल रही थी। आत्म कल्याण की भावना से प्रेरित होकर घर स्वजन सभी से मुंह मोड़कर गुरु चरणों का सहारा पकड़ा था और अल्प समय के पश्चात् गुरुणी जी का स्वर्गवास, ठीक वैसा ही था जैसे कोई नाविक नाव को मझधार में छोड़ कर चला गया हो। यह परिस्थिति बड़ी निराशाजनक थी। पर विवशता थी। मृत्यु के सम्मुख सबको हारना पड़ता है। अब धैर्य धारण करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं था। वीतराग वाणी से इस वज्राघात को गुरुवर्या ने सहन किया। साध्वी संघ में आपको सिर आंखों पर रखने वाली अनेकों साध्वियां थी। पू. श्रीकानकुंवर जी म.सा. आपकी गुरुणी जी तो थी ही, संसार पक्ष से आपके भुआजी भी थे। फिर भी महासती श्री जमना जी म.सा. का स्वर्गवास आपके जीवन की सर्वोपरि दुःखद घटना थी। इस अविस्मरणीय घटना के पश्चात् आपने साध्वी संघ के साथ कुचेरा से विहार कर दिया । जिनके लिये कुचेरा में रहना पड़ रहा था, अब जब वे ही नहीं रही तो फिर कुचेरा में रहने का लाभ ही क्या। अब आपका विचरण होने लगा। आपका यह विचरण राजस्थान ही सीमा तक ही हो रहा था। पाली वर्षावास- पू. उपप्रवर्तक स्वामी श्री ब्रजलाल जी म.सा. एवं पू. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.सा. का वि. सं. २०३४ का वर्षावास पाली माखाड़ में था। आपके सान्निध्य में ही दाद गुरुवर्या महासती श्री कानकुंवर जी म.सा. एवं गुरुव- महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. आदि ठाणा का वर्षावास भी पाली में (५२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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