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________________ कंचनकुंवरजी म.सा. एवं सात अन्य बहनों ने एक साथ मासखमण की तपस्या की। महासतीजी एवं तपस्विनी बहनों का श्रीसंघ दुर्ग ने अभिनंदन किया। मासखमण का प्रत्याख्यान-वाणी भूषण श्री रतनमुनि जी म.सा. के मुखारविंद से हुआ। इस प्रकार आपका दुर्ग का वर्षावास सानन्द सम्पन्न हुआ। वर्षावास समाप्त होने पर दुर्ग से आपका विहार हो गया। श्रीसंघ, दुर्ग ने उदास मन से आपको विदाई दी। मार्ग में आने वाले छोटे-छोटे गांवों में आप धर्म की गंगा प्रवाहित करती हुई आगे बढ़ने लगी। सरल, सरस, रोचक प्रवचनों से अनपढ़ किसान आपके भक्त बन जाते। भावविभोर होकर सप्त व्यसनों का त्याग करते। इस प्रकार गाँव-गाँव में आप सदाचार सत्य अहिंसा के बीच वपन करती हुई बालोद पधारी। आपके प्रवचन की यहां भी धूम मच गई। श्रीसंघ बालोद आपका वर्षावास अपने यहां करवाने के लिए आग्रह भरी विनती करने लगा। श्रीसंघ की विनती का इस समय आपने साधु भाषा में उत्तर दे दिया। कुछ दिन आपका यहाँ विराजना हुआ। यहां आपके प्रवचनों का अत्यधिक प्रभाव हुआ। आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर रायपुर निवासी बहन लता को संसार असार लगने लगा और वह आपके चरणों में रहकर अध्ययन करने लग गई। बालोद से आपका विहार धमतरी की ओर हुआ। छत्तीसगढ़ में आचार्य प्रवर श्री जयमल जी सा.के संघ की साध्वी जी का नाम छत्तीसगढ़ में गूंज रहा था। इसी समय मेरे सांसारिक पिता श्री अनोपचंद जी पारख आपके दर्शन करने के लिये आपकी सेवा में पहुंचे। पू. गुरुवर्या ने उन्हें पहचानते हुए कहा- “हमारे पुराने भक्त हो ! कहाँ रहते हों?" ___ “मैं भखारा रहता हूं। आप हमारे गुरुवर्या हैं। कृपा करके भखारा पधारें। हमारी भावना यह है कि महावीर जयंती आपके पावन सान्निध्य में मनावें।" अनोपचंद जी पारख ने निवेदन किया। - आपने विनती स्वीकार कर भखारा आकर महावीर जयंती मनाने की स्वीकृति प्रदान कर दी। इस स्वीकृति की सूचना जब मेरे परिवार में और भखारा के लोगों को मिली तो सब का हृदय हर्ष और उल्लास से भर गया। सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात तो यह थी कि जय गच्छ की कोई भी साध्वी प्रथम बार भखारा पधार रही थी। इस सूचना से मेरा हृदय गद्गद् हो गया। रोम-रोम पुलकित हो गया। इस सूचना मात्र से मुझे जो प्रसन्नता का अहसास हुआ उसे मैं शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकती। इसका कारण यह था कि विगत दो तीन वर्षों से मेरी भावना दीक्षाव्रत अंगीकार करने की हो रही थी। किन्तु परिवार की ओर से अनुमति नहीं मिल पा रही थी। मानस पटल पर विचार उत्पन्न होने लगे कि महासती जी कुछ दिन तो यहां ठहरेंगे ही। उस अवधि में उनका पावन सान्निध्य भी मिलेगा और उनकी सेवा करने का सौभाग्य भी मिलेगा। मैं अपनी दीक्षा के लिये मन ही मन योजना भी बनाती रही थी किन्तु उसमें मुझे सफलता अभी तक नहीं मिल पाई थी। अब ऐसा आभास होने लगा कि महासती जी के आगमन से कुछ न कुछ मार्ग अवश्य निकल आवेगा। मैं बड़ी उत्सुकता से महासती जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त हुई और वह दिन भी आ गया। गुरुवर्याश्री भखारा पधारी। भखारा की जनता ने आपका पूरे उत्साह से साथ स्वागत किया। प्रवचन गंगा प्रवाहित होने लगी। ज्ञान पिपासु जनता अपनी प्यास बुझाने लगी। महावीर जयंती बड़े उल्लास के साथ मनाई गई। इस अवसर पर अनेक ग्राम नगरों से काफी बड़ी संख्या में भक्तगण पधारे । महासती जी के पावन सान्निध्य से समारोह में चार चांद लग गए। (५६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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