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दान रो महत्त्व
एक सेठ जी हा। वारे चार बेटा हा। चारा रे ही आपस में प्रेम घणो ही हो। सेठ-सेठाणी रे हमेशा से नियम हो कि पाँच सामायिक करने पछे मुंह में पाणी घालता हा। सेठ जी रोज दान करता हा। एक आवला जितो रोज करीब बाद में ही मुंह में कि लेवता हा। सेठाणी का बड़ा बेटा लगार छोटा बेटा तक चारो रा ही ब्याव हुग्यो। चारों देवराणियां-जेठाणियां में प्रेम घणओई हो। सेठ सेठाणी ने भी बेटा-बहुआ ही खानी संतोष हो। कदई भी दान देवण के खातिर बहुआ बेटा कि भी कियो कोनी। पण संगत ऐसी चीज है जिणु मिनख चोखक चोखो भी सीख मान लेंवे। एक दिन छोटी बहू बारे निकली कोई कामू। जणा पाड़ोसण हेलो मार्यो। बहू बिचारी छोटी हीज और पाड़ोसण तो सिखावणे ताकती ही। एक छोटा टाबरिया खेलण के वास्ते बारे गयोड़ा हा। जणा छोटी बहू टाबरा ने बुलावण रे बारे आयी। टाबरा ने हेलो मार्यो। जिते तो पाड़ोसन ताकती तो हीज। इते में देखने के वे आ वो अठा ने आ को बहू पाड़ोसण देखने बिला बाता करने लागी। वा ही वाह तू तो गेलीज है। थने ठा कोनी ए सासू-सुसरा तो थारो ध्यान नहीं राखेला और दान देवण को बहानों राखे। सारे धन यू गंवा देवे वा तू तो यू कर मोरा रखियोडी है जिके कमरा रे तालो लगा बस जा बह तो पाडोसण रे क्रेवे में आयगी और सबह
और तालो लगा दियो। सासूजी उठिया। पाँच सामायिक पाली, पाल ने नीचे आया। आवता ही कमराा रे तालो देखियो, देखता ही खिम्या धार ने सासू जी ऊपर चढ़ गया। सुसरा जी सेठाणी आया जाण ने दोनो जणा उपवास पच्चविस्खया। तीन दिन रे बाद रात को सेठाणी ने विचार कियो कि आप अठहूं चालो। दोनो ही रातों रात निकल गया। आगे जाता जाता एक झाड़ी में जार पहुंच्या औरपाँव रखता ही जंगल में बहुत बड़ा झाड़ झंकारा के बीच मायने एक वेली बणगी और नौकर चाकर वाह वाह करण ला गया। सेठ-सेठाणी नवकार सी सू पारणो कियो, दान दियो और सुखे सुखे रेवे। अठि ने चारणारो घर हो जिंको अंदेवो हग्यो। लारे बेटा बहुआ भूखा क मरणे लाग्या। आपस के मायने केवे मैं तो कि भी कोनी करयो जिता में छोटी बहू प्रकट हुई और केवे मैं काई करूं पाड़ोसण ने मन सिखादी जकू मैं तालो लगा दियो। अबे कांई करा। सोचणे लाग्या। सोचता सोचता सुणिया के एक गांव के बाहर दानी सेठ है। तलाब खुदावे जको आद जका ने ही धपाय देवे। जण आ सगला घरा रा व्यक्ति पहुँच गया। सेठ-सेठाणी घर का बेटा बहुआ ने पहचान लिया। जणा घरे बुलाया। सगला ने घर धन्धा पर लगाय दिया। सेठाणी स्नान करने बैठी तो एक बहू कियो मा सा थारा मोर धोऊ। सेठाणी के वे नहीं, मारे तो कोई जरुरी नहीं है। पण ना केता केता बहू मोर धोवणा बैठ गयी। सेठाणी के मोरा रे लाई ए मसो हो। मसो देखने बहू की आख्या में पाणी आय ग्यो। तो सेठाणी के वे भला क्यो रोवे। बहू के वे नहीं माँ सा म्हारा ही सासूजी के चिह्न हो। जिकास रोज आयग्यो। मांसा और कोई बात नहीं है जणा सेठ-सेठाणी विचार करयों या 'जी अरे आया प्रकट हुय जावा। जणा सासू-सुसरा के वे में ही थारा मां-बाप-सासू-सुसरा हा। तो यू सुण ने सारा जणा पग पकड़ लिया और रात रे रात पछा आया। थोड़ी दूर चाल्या। पाछा लारे देख्यो तो लारे सूनो हुग्यो, जंगल । सगलो परिवार घरे आ ग्यो। और पछी पेला जैसी ही दान देवण ला गया। घर को गौरव बणणे लाग्यो और सगलो परिवार दान रे लारे जीवन में लोग सुधार लेवे इण वास्ते कोई किरा सीख में आयने दान देवण में आड़ा मती आयज्यो।
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