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- समाचार प्राप्त होते ही बालाघाट से कुछ श्रावक तत्काल नासिक के लिये रवाना हो गये, ताकि गुरुदेव के अंतिम दर्शन कर सके और उनके अंतिम संस्कार में सम्मिलित हो सके। गुरुदेव के अंतिम संस्कार वाले दिन पूरे भारतवर्ष से दर्शनार्थियों और श्रद्धालु भक्तों का सैलाब नासिक की ओर उमड़ पड़ा था। गुरुदेव के परलोकगमन से एक ऐसी रिक्तता हो गई जिसका भरना असंभव प्रतीत होता है। गुरुदेव के आज्ञानुवर्ती मुनिराजों, महासतियों एवं श्रद्धालु श्रावकों के लिये तो यह एक अपूरणीय क्षति थी। उन्हें तो ऐसा लग रहा था, मानों उनका सब कुछ लुट गया हो।
दक्षिण की ओर :- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडू की ओर से काफी दिनों से विनती आ रही थी। गुरुदेव के देवलोक हो जाने से मन भी अशांत था। विहार तो होना ही था। इस कारण गुरुवर्या ने आंध्र प्रदेश की और विहार करने का संकेत दिया। तदानुसार विभिन्न ग्राम नगरों में धर्म प्रचार करते हुए असीफाबाद पधारना हुआ। इस समय मेरा वर्षांतर चल रहा था। असीफाबाद में प्रत्याख्यान के साथ वर्षी तप का पारणा हुआ। यहां से लक्षादिपेट पदार्पण हुआ। यहां आते आते कमजोरी इतनी बढ़ गई थी कि चलना फिरना तो ठीक उठना बैठना तक बंद हो गया। ये समाचार आसपास के ग्राम नगरों तक फैल गये थे। इससे दर्शनार्थियों का आवागमन अधिक होने लगा। बोलाराम से सुराणा परिवार का आगमन हुआ। वे अपने साथ व्हील चेअर भी लेकर आए थे। लक्षादिपेट से बोलाराम आगमन हुआ। इस अवधि में सेवा का लाभ बोलाराम वालों ने ही लिया। इसी बीच वर्षावास का समय भी आ रहा था। बोलाराम वालों की भावना को ध्यान में रखते हुए वर्षावास बोलाराम में किया। यह वर्षावास भी धर्मसाधना की दृष्टि से काफी सफल रहा। वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् आसपास के क्षेत्रों में विचरण करते हुए गुरुणी मैया का सिकंद्राबाद पदार्पण हुआ। वर्षावास भी यहीं हुआ। सिकंद्राबाद में भाखारा निवासी श्रीमान अनोपचंद पारख की सुपुत्री कु. चंचल का दीक्षोत्सव धूमधाम से हुआ और नवदीक्षिता साध्वी का नामकरण साध्वी श्री चंद्रप्रभाजी म.सा. करके उन्हें परमविदुषी महासतीश्री चंपाकुवंरजी म.सा. की शिष्या के रूप में घोषित किया।
वर्षावास की अवधि में कर्नाटक प्रांत से श्रद्धालु भक्तों की विनती हो चुकी थी कि आपको वर्षावास के पश्चात् कर्नाटक की ओर. पधारना है। एक बार तो लगभग नब्बे श्रावक/श्राविकायें विनती लेकर उपस्थित हुए थे।
वर्षावास समाप्त हुआ और कर्नाटक के भक्तों की विनती को ध्यान में रखकर गुरुणी मैया ने कर्नाटक की ओर विहार कर दिया। विभिन्न ग्राम-नगरों में धर्म प्रचार करते हुए आपका पदार्पण रायचूर में हुआ। रायचूर आगमन से श्री संघ में उत्साह का संचार हुआ। जिनवाणी की पावनधारा प्रवाहित हो चली। प्रवचनों की धूम मच गई। रायचूर में आपका प्रभाव सभी पर समान रूप से पड़ा। महावीर जयंती हर्षोल्लासपूर्वक रायचूर में मनाई गई। इधर वर्षावास के लिये भी स्थान स्थान से विनतियां आ रही थी। सिंधनूर श्री संघ की भावभरी आग्रहपूर्ण विनती को देखते हुए गुरुणी मैया ने सिंधनूर श्री संघ को आगामी वर्षावास के लिये स्वीकृति प्रदान कर दी। समयानुकूल रायचूर से विहार हुआ। अभी वर्षावास प्रारंभ होने कुछ समय शेष था। अतः आसपास के ग्राम नगरों में धर्मप्रचार करते हुए गुरुणी मैया का सिंधनूर में पर्दापण हुआ। सिंधनूर कर्नाटक में एक छोटा क्षेत्र है किंतु श्री संघ में अच्छा उत्साह है। समारोहपूर्वक
वर्षावास हेतु सिंधनूर में प्रवेश किया। वर्षावास काल में अच्छी धार्मिक जागति रही। साहकार पेठ. मद्रास ' से लगभग प्रतिदिन श्रावक-श्राविकाओं का दर्शनार्थ आना बना रहा। सिंधनूर वर्षावास में गुरुणी मैया का
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