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________________ स्वास्थ्य भी नरम ही रहा। पाचन क्रिया ठीक नहीं रही और यूरिन के कष्ट के कारण स्वास्थ्य में गिरावट आ गई। इतना होने पर भी आत्मबली गुरुणी मैया ने अपने संयम में किसी प्रकार की शिथिलता नहीं आने दी। धार्मिक क्रियायें नियमित रूप से चलती रही। शोलापुर से उपचारार्थ डाक्टर को भी बुलवाया था। डाक्टर ने गुरुणी मैया का परीक्षण करके योग्य उपचार भी आरंभ कर दिया था। औषधि बराबर चल रही थी। गरुणी मैया की अस्वस्थता को देखते हए श्री संघ साहकार पेठ. मद्रास ने मद्रास की ओर विहार करने की भावभरी विनती की। वैसे इनकी विनती काफी दिनों से गुरुणी मैया की सेवा में होती आ रही थीं। अनुकूलता के अभाव में मद्रास की और विहार नहीं हो पा रहा था। वर्षावास समाप्त हुआ और विहार मद्रास की ओर हो गया। सिंधनूर से मद्रास के लिये विहार हो गया। यह समाचार साहुकार पेठ, मद्रास श्रीसंघ को मिल गया। वहां प्रसन्नता की लहर फैल गई। अंतत: उनकी वर्षों की साध पूरी होने जा रही थी। गुरुणी मैया विभिन्न ग्रामों नगरों में धर्मज्योति प्रज्वलित करते हुए मद्रास की ओर बढ़ रही थी। जिस ग्राम या नगर में गुरुणी मैया का प्रवेश होता वहीं मद्रास के श्रद्धालु श्रावक उपस्थित हो जाते। सिंधनूर से मद्रास तक के विहार में जितने स्थानों पर भी मुकाम हुआ प्रत्येक स्थान पर मद्रास वालों की उपस्थिति रही। इस प्रकार ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए गुरुणी मैया मद्रास पधारे और अक्षय तृतीया के पूर्व वैशाख शुक्ला प्रतिपदा को साहुकार पेठ, मद्रास की भावभरी विनती को ध्यान में रखते हुए महिला स्थानक, साहुकार पेठ, मद्रास में प्रवेश किया। मेरे वर्षी तप का घरणा भी यहीं हुआ। श्री संघ की विनती को ध्यान में रखते हुए यही वर्षावास भी किया। यह वर्षावास धर्म ध्यान के साथ सानंद संपन्न हुआ। इसी बीच गुरुणी मैया का स्वास्थ्य बिगड़ता गया। उपचार से आपके स्वास्थ्य में सुधार भी होता किंतु विहार योग्य स्थिति नहीं बन पा रही थी। इस कारण एक के पश्चात् एक कुल पांच वर्षावास यहीं किये। ये वर्षावास सकारण हुए। वज्रपात :- गुरुणी मैया की अस्वस्थता के कारण लगभग पांच वर्षों तक साहुकार पेठ, मद्रास में स्थिरता रही। अस्वस्थता की अवधि में भी आपश्री की संयम के प्रति दृढ़ता रही। माह मार्च १९९१ हमारे लिए अशुभ रहा। आपकी प्रथम शिष्या परमविदुषी महासती श्रीचम्पाकुवंरजी म.सा. अचानक अस्वस्थ हो गए। उनके लिये तत्काल उचित उपचार की व्यवस्था की गई। उपचार चलता रहा किंतु किसी प्रकार का लाभ होता दिखाई नहीं दे रहा था। विशेष डाक्टरों को भी बुलाकर परीक्षण करवाया गया। उनके परामर्श से भी औषधियां दी गई। किंतु कोई आशाजनक परिणाम नहीं निकला। डाक्टरों के अनुसार उन्हें ब्रेनहेमरेज हो गया था। अंततः दिनांक १७ मार्च १९९१ को क्रूर काल ने उन्हें अपना ग्राम बना लिया। परमविदुषी महासती श्रीचम्पाकुवंरजी म.सा. के असमय देवलोक हो जाने से सभी को गहरा आघात लगा। समाज को आपसे बहुत आशायें थी। गुरुणी मैया का तो बुरा हाल था। गुरुणी मैया ने अपनी प्रिय शिष्या के दिवंगत होने पर कहा था “जाना मुझे चाहिए था, चम्पा तू चली गई। काल ने न्याय नहीं किया।” गुरुणी मैया के मन मस्तिष्क पर गहरा आघात लगा। महाप्रयाण :- गुरुणी मैया पिछले कई वर्षों से अस्वस्थ थी। उपचार से उन्हें लाभ तो होता किंतु स्थाई लाभ नहीं हो रहा था। परमविदुषी महासती श्री चंपाकुवंरजी म.सा. के अचानक स्वर्गवास हो जाने का गुरुणी मैया पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी अस्वस्थता बढ़ने लगी। वर्षावास प्रारंभ हो चुका था। सभी धार्मिक क्रियाएं यथावत चल रही थी। एक दिन एकाएक गुरुणी मैया का स्वास्थ्य एकदम अधिक बिगड़) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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