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________________ कान कुवंरजी आये हैं नई रोशनी लाये हैं। चम्पाकुवंरजी आयी हैं शास्त्रों की ज्योति जगायी है। आघात :- चांगाटोला से विहार हुआ। विभिन्न ग्रामों में धर्म प्रचार करते हुए कटंगी पर्दापण हुआ। कटंगी में समाचार मिला कि श्रद्धेय उपप्रवर्तक स्वामी ब्रजलालजी म.सा. का धूलिया में आषाढ़ कृष्णा अष्टमी को स्वर्गवास हो गया है। इस दुःख समाचार से सभी को गहरा आघात लगा। गुरुदेवश्री आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषिजी म.सा. की सेवा में नासिक पधार रहे थे। विधि की विडम्बना भी विचित्र है। अभी गुरुदेव आचार्य सम्राट की सेवा में पहुंच भी नहीं पाये थे कि सभी को रोता बिलखता छोड़कर सदा सदा के लिये बिदा हो गये। समाचार मिलते ही चार चार लोगस्स का ध्यान किया। शोक सभा का आयोजन कर गुरुदेव की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिये श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शासन देव से प्रार्थन की गई। बालाघाट वर्षावास :- बालाघाट में वर्षावास करने की घोषणा हो चुकी थी। वर्षावास का समय निकट आ रहा था। इस कारण विहार बालाघाट की ओर हो गया। शुभ मुहूर्त में वर्षावास हेतु बालाघाट में धूमधाम से प्रवेश हुआ। वर्षावास प्रारंभ हुआ और इसी के साथ प्रवचन भी प्रारंभ हुए। यहां जिनवाणी की अच्छी प्रभावना हुई। व्याख्यान बहुत ही प्रभावशाली होते थे। व्याख्यान में शास्त्रीय उद्धरणों के साथ साथ कथाओं के दृष्टांत भी होते थे। इससे श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते थे। विभिन्न त्याग-तपस्यायें भी खूब हुई। इस प्रकार बालाघाट का वर्षावास धर्म ध्यान की दृष्टि से काफी सफल रहा। वर्षावास सानंद संपन्न र बिटाई का क्षण भी आ गया। बालाघाट श्री संघ ने अश्रपरित नेत्रों से गरुणी मैया को बिदा किया। स्थानक से समारोहपूर्वक बिदा होकर गुरुणी मैया अपनी शिष्याओं के साथ विहार कर नगर के बाहर एक स्थान पर मुकाम हुआ। यहां से आगे किस ओर विहार करना है? इस बात पर योजना बन रही थी। इसी समय श्रीमान मोहनलालजी ललवानी बदहवासी की स्थिति में गुरुणी मैया की सेवा में आये। वज्राघात :- श्रीमान मोहनलालजी ललवानी आर्तध्यान में थे। वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। क्या कहूं? कैसे कहूं? विधि ने हमारे साथ बड़ा ही क्रूर व्यवहार किया है। हम सब श्री ललवानी जी के ऐसे व्यवहार से हतप्रभ थी। हमारे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो गया है। गुरुणी मैया ने पूछा “ललवानी जी क्या बात है। आप ऐसे घबराये हुए क्यों हैं?' “महाराज सा., गुरुदेव नहीं रहे। नासिक से ऐसी सूचना मिली है कि क्रूर काल ने गुरुदेव को अपना ग्रास बना लिया हैं।" इतना कहते कहते उनका कंठ अवरुद्ध हो गया और आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित हो चली। हम सब अवाक, हतप्रभ, सूनी सूनी आँखों से एक दूसरे की ओर देखती रही। विधि ने कितना क्रूर उपहास किया है। अभी कुछ दिनों पूर्व धूलिया में स्वामीजी के देवलोक होने का आघात सहन भी नहीं कर पाये थे कि आज फिर यह वज्राघात हो गया। हमारे श्रद्धेय युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. 'मधुकर' अब हमारे बीच नहीं रहे। इस समाचार से सभी शोक से भर गये। ऐसे में ही चार चार लोगस्स का ध्यान किया और शोक सभा का आयोजन कर श्रद्धांजलि प्रदान की गई। (१७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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