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________________ गत रात वाली घटना की जानकारी मिली तो उसने गुरुणी मैया के समक्ष निवेदन किया कि आपकी आयुष्य प्रबल थी, इसीलिये बच गये। वह व्यक्ति डाकू से भी बढ़कर है। धर्म के प्रभाव से आपका किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं हुआ। वर्षावास हेतु कटंगी में प्रवेश : वर्षावास का समय निकट आ रहा था। इसलिये कटंगी पहुंचने की शीघ्रता भी थी। जहां भी पहुंचते, वहीं कुछ रुकने की प्रार्थना होती, किंतु हमारी अपनी मजबूरी थी। ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए वर्षावास हेतु कंटगी में प्रवेश किया। श्री संघ कटंगी ने समारोह पूर्वक बड़े ही हर्षोल्लास पूर्वक प्रवेश करवाया। प्रवेश के समय नगर की छटा दर्शनीय थी। वर्षों की विनती के पश्चात् श्री संघ कटंगी की इच्छा की पूर्ति हो पाई थीं। वर्षावास काल में प्रवचनों में श्रोताओं की उपस्थिति काफी रहती थी। धर्मध्यान की ओर श्रावक-श्राविकाओं में अच्छा उत्साह रहा। तपस्यायें भी हुई। इस प्रकार गुरुणी मैया का यह वर्षावास धर्म ध्वजा फहराने में पूर्ण सफल रहा। अनेक ग्राम नगरों के श्री संघ भी वर्षावास की अवधि में कटंगी में उपस्थित हुए, और अपने अपने क्षेत्र में पधारने की विनती करने लगे। दर्शनार्थियों का तो तांता लगा रहता था। एक दिन दुर्ग श्री संघ सेवा में उपस्थित हुआ और गुरुणी मैया की सेवा में अपनी भाव भरी विनती बड़े ही प्रभावी ढंग से रखी। गुरुणी मैया ने साधु भाषा में अपना उत्तर दिया। दुर्ग श्री संघ इससे कुछ आश्वस्त अवश्य हुआ। कुछ दिन व्यतीत हो जाने के उपरांत पुनः बसें लेकर दुर्ग श्री संघ सेवा में उपस्थित हो गया। ऐसा प्रतीत होने लगा कि श्री संघ दुर्ग की विनती को टालना संभव नहीं हैं किंतु अभी वर्षावास समाप्त नहीं हुआ था। निश्चित रूप से कहा भी नहीं जा सकता था फिर भी गुरुणी मैया ने उन्हें अपने ढंग से आश्वस्त कर दिया। श्री संघ दुर्ग को अब विश्वास हो गया कि वर्षावास के पश्चात् गुरुणी जी दुर्ग को अपनी चरणरज से अवश्य पावन करेंगी। श्री संघ दुर्ग जैन धर्म की जय, महावीर स्वामी की जय गुरुदेव की जय और गुरुणी मैया की जय जय कार कर वापस लौट गया। वर्षावास समाप्त हुआ और विहार का समय आ गया। श्री संघ दुर्ग की विनती का ध्यान रख कर गुरुणी मैया ने दुर्ग की ओर विहार कर दिया। दुर्ग श्री संघ को जब यह समाचार मिले तो वहां खुशियां छा गई। विभिन्न ग्राम नगरों में धर्म प्रचार करते हुए दुर्ग पधारना हुआ। इस अवसर पर श्री संघ दुर्ग का उत्साह देखने योग्य था। कुछ दिन यहां ठहर कर आसपास के ग्राम नगरों की ओर विहार कर दिया। आगामी वर्षावास की घोषणा दुर्ग के लिये कर दी गई। इससे दुर्ग श्री संघ का उत्साह द्विगुणित हो गया। दुर्ग में वर्षावास :- वर्षावास का समय निकट आने पर शुभ मुहूर्त में वर्षावास हेतु दुर्ग में प्रवेश किया। श्री संघ दुर्ग ने धूमधाम से आपका प्रवेश करवाया। आपके दुर्ग प्रवेश के साथ ही दुर्ग में धर्म गंगा प्रवाहित होने लगी। धर्मध्यान का ठाट लग गया। दर्शनार्थियों की भीड़ पूरे वर्षावास की अवधि में बनी रही। वर्षावास के चार माह किधर निकल गये कुछ पता ही नहीं चल पाया। दुर्ग का वर्षावास सानंद संपन्न हुआ, और गुरुणी मैया ने ठाणा चार से बालोद की ओर विहार कर दिया। (१५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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