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________________ उन्होंने निवेदन किया कि आप लाया हुआ आहार वापर लें। मैं बाहर खड़ा हूं। आप किसी प्रकार की चिंता न करें। इसके पश्चात् हम चारों साध्वियों ने आहार किया। थोड़ी देर रुक कर श्री अशोकचंद्रजी वहां से चले गये। ___हम सभी साध्वियां गुरुणी मैया के समीप बैठकर प्रतिक्रमण आदि धार्मिक क्रियाओं से निवृत हुई। इसके पश्चात् हम सब तो सो गई किंतु गुरुणी मैया अर्धरात्रि तक माला फेरती रही। . साध्वीजी श्री बसंत कुवंरजी म.सा. ने अर्धरात्रि में निवेदन किया “गुरुणी जी ! अब आप थोड़ा विश्राम कर लें। मैं बैठी रहूंगी।" ___गुरुणी मैया ने सुना और लेटे ही थे कि वही व्यक्ति जिसका नाम पालीवाल था, आकर खड़ा हो गया। वह माचिस जलाते जलाते कमरे के अंदर तक आ गया। सभी साध्वियां जाग रही थी तत्काल उठकर बैठ गयीं। हमारे साथ वाली बहन ने अपने पास रखी टार्च जलाई। उस व्यक्ति ने कहा 'टार्च नहीं जलाना” उसके इतना कहते ही हम सभी बाहर छत के नीचे आकर खड़ी हो गई। वह व्यक्ति भी बाहर आकर गपशप करने लगा। उसने कहा - "तुम डरती हो। डर किस बात का है, बताओ तो।” ___ “यह तुम्हारा भ्रम है। हमें किसी से डर नहीं लगता है फिर हम डरें भी तो क्यों?” गुरुणीजी ने कहा। “आप मुझे जानती नहीं हो। मैं आदमी को मार कर हाथ भी नहीं धोता हूं और खाना खा लेता हूं।" उस आदमी ने कहा। ऐसा कहकर वह व्यक्ति हमारे साथ वाले भाई को, जो सोया हुआ था, जगाने लगा। गुरुणी मैया ने कहा "उस भाई को सोने दो, उसे उठाने की आवश्यकता नहीं है।" इसके पश्चात् गुरुणी मैया ने उसे बड़े ही प्रेम से समझाकर रवाना कर दिया। वह चला तो गया किंतु हमारे मन में यह आशंका बनी रही कि वह व्यक्ति पुनः लौटकर आयेगा। हम में से कोई भी सोया नहीं, सभी जाग रहे थे। कुछ विचार कर भी नहीं पाये थे कि वह व्यक्ति लौटकर आ गया। हमारी आशंका सत्य निकली। आते ही उस व्यक्ति ने कहा - "आप सोये नहीं अभी तक बाहर क्यों बैठे हैं?" __ गुरुणी मैया ने दृढ़तापूर्वक कहा - "तुम्हें इससे क्या लेना देना। हमारी तो यह आदत में है हम माला फेरने के लिये बैठे है।" हमें उस व्यक्ति का आचरण गलत लग रहा था। मन ही मन आने वाले समय में होने वाली संभावित घटना पर विचार भी चल रहा था। हमें तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? गुरुणी मैया साहस के साथ उस व्यक्ति से बात करती जा रही थी और समझाती भी जा रही थी। इसी बीच हमारे साथ वाली बहन ने स्कूल भवन के पास वाले मकान में रहने वालों को आवाज लगाई। आश्चर्य तब हुआ,जब बार बार पुकारने पर भी उस मकान से कोई भी व्यक्ति न तो निकल कर बाहर आया और न ही वहां से कोई आवाज सुनाई दी। इधर गुरुणी मैया उस व्यक्ति से दृढ़तापूर्वक बात करती रही और उसे समझाती भी रही। हम सब श्री नमस्कार महामंय का स्मरण करने लगी। समय व्यतीत होता गया और सूर्योदय के लक्षण प्रकट होने लगे। पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी। किसान अपने पशुओं को लेकर वन की ओर जाने लगे। अनायास वह व्यक्ति बात करते करते पलटा और जिधर से आया था उधर चला गया। थोड़ी देर में सूर्योदय हो गया और गुरुणी मैया के आदेश से हमने वहां से विहार कर दिया। वनखेड़ी नामक ग्राम पहुंचे। वहां एक दिगम्बर जैन भाई के यहां मुकाम किया। जब उसे (१४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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