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________________ वर्षावास सानंद सम्पन्न हुआ और श्रीमान फूसालालजी पुनः आ गए। विहार की तैयारियाँ होने लगी और फिर एक दिन गुरुदेव की आज्ञा से उनके मंगल वचन सुनकर कटंगी (मध्य प्रदेश) की ओर विहार कर दिया। राजस्थान से मध्य प्रदेश की ओर विहार हो गया। छोटे बड़े ग्राम नगरों में धर्म प्रचार कर विहार यात्रा आगे की ओर बढ़ती रही। मार्ग में गुरुणी मैया ज्वर से पीड़ित हो गई। उचित उपचार से उनका स्वास्थ्य ठीक हुआ तो अन्य साध्वियों को ज्वर हो गया। औषधि आदि के सेवन से स्वास्थ्य लाभ हुआ। अस्वस्थता होते हुए भी यात्रा में रुकावट नहीं आई और सभी साहस और उत्साह के साथ आगे बढ़ती रही। विहार में खट्टे मीठे सभी प्रकार के अनुभव होते हैं। बाधा और कठिनाइयां भी आती है। उनका धैर्य और साहस के साथ मुकाबला करना पड़ता है। हम कुल चार ठाणा थे। पाली से विहार किया उस समय हमारे साथ दाऊजी थे। वे जावरा (मध्य प्रदेश) तक हमारे साथ रहे। उसके पश्चात्, एक वृद्ध व्यक्ति ही हमारे साथ रहा। एक गृहस्थ बहन तारा जो वर्तमान में साध्वी तरुण प्रभा है, भी हमारे साथ थी। हमारा विहार निरंतर चल रहा था। कहीं भी अधिक रुकने का अवसर नहीं था। इसका कारण यह था कि विहार लंबा था। श्रद्धालुओं की ओर से कुछ दिन रुक कर प्रवचन का एवं सेवा का लाभ देने का आग्रह तो बहुत हुआ किंतु हमारी अपनी समस्यायें भी थी, इस कारण कहीं अधिक नहीं रुके और सतत् विहाररत रहे। इसी विहार क्रम में एक घटना घटित हुई। इस समय गुरुणी मैया का साहस देखने योग्य था। विषम परिस्थिति :- ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए गुरुणी मैया के साथ हम पीपरिया पहुंचे। यहां दिगम्बर जैन मतावलम्बियों के घर है। पीपरिया वालों ने कहा कि आप फूलचंदजी सोनी के घर में रुक जाना। श्री सोनी का घर मार्ग पर ही था। मैं सबसे आगे थी। घर में उतरने के लिये अनुमति मांगी। घर में ठहरने के लिये स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया और एक स्कूल भवन में ठहराने को कहा। हम सब स्कूल भवन में ठहर गये। स्कूल भवन में एक ही कमरा था। खिड़कियां आदि भी टूटी हुई थी। फिर भी हम इस विषम परिस्थिति को स्वीकार कर उसमें ठहर गये। इसके पश्चात् गवेषणा के लिये गए। तब न तो प्रासुक जल ही मिला और न कुछ आहार ही मिला। कुछ समय के लिये हम सभी ने धैर्य धारण कर समय व्यतीत करना उचित समझा। लगभग एक बजे सोनीजी के यहां सूचना आई और तब तत्काल सोनी जी का लड़का हमारे पास आया और गोचरी के लिये प्रार्थना की। हम दो साध्वियां आहार पानी के लिये गयी और आहार लेकर वापस आ गयी। स्कूल भवन के इस कमरे का दरवाजा टूटा हुआ था और खिड़कियां भी नहीं थी। गांव के लड़के बहुत ही उद्दण्ड थे। उनमें विवेक नाम मात्र का भी नहीं था। उनकी उद्दण्डता इतनी अधिक थी कि उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। ये लड़के खिड़की में से निब्बोली, बोर, एवं आम की गुठलियां आदि फेकने लगे। हमारा आहार पानी करना कठिन हो गया। ऐसी विषम परिस्थिति को देखकर हमारे साथ वाले भाई ने पहले तो उन लड़को समझाने का प्रयास किया, किंतु जब इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ तो उसने लड़को को डराया धमकाया। इस पर लड़के अपने काका को बुला लाये। उसने आकर भी कुछ असभ्यता दिखाई। इस पर गुरुणी मैया ने उसे बड़े ही प्रेम से समझाया। उस पर भी इस समझाइश का कोई असर नहीं हुआ। इस प्रकार उस दिन तीन बजे तक हमारी गोचरी नहीं हो पाई। इसी समय कटंगी वाले मूलचंदजी चोरड़िया के दामाद श्री अशोकचंद्रजी गाडरवाड़ा से यहां आये। उन्होंने दर्शन किये। साथ वाले भाई से उन्हें यहां की स्थिति का पता चला। गुरुणी मैया से (१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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