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. सतत् विहार :- गुरुणी मैया का बालोद आगमन हुआ और आपके प्रभाव से यहां कु. ललिता को विरक्ति हो गई। कु. ललिता ने संसार की असारता को समझ कर आपके सानिध्य में संयम व्रत अंगीकर करने का दृढ़ संकल्प कर लिया।
बालोद से गुरुणी मैया धमतरी पधारी। यहां भी आपके प्रभाव के परिणाम स्वरूप एक वैरागन बहन की उपलब्धि हुई। धमतरी से विहार कर गुरुणी मैया आदि ठाणा का पदार्पण भखारा हुआ। भखारा में श्रीमान अनोपचंदजी की सुपुत्री कुमारी चंचल आत्मकल्याण के मार्ग पर चलने के लिये उत्सुक थी। गुरुणी मैया का सान्निध्य पाकर कुमारी चंचल का वैराग्य भाव जाग उठा और उसने दीक्षा लेने का मानस बना लिया। इस प्रकार छत्तीसगढ़ में गुरुणी मैया ने धर्म ध्वजा फहरा दी और अच्छी धार्मिक जागृति उत्पन्न कर दी।
कु. ललिता की दीक्षा दुर्ग में हुई और उन्हें साध्वी श्री चेतनप्रभाजी म. के नाम से प्रसिद्ध किया। दीक्षोत्सव के पश्चात् बालोद पधारे। बालोद से विहार कर अछोली नामक एक छोटे से ग्राम में पधारना हुआ। यहां गुरुणी मैया अस्वस्थ हो गई। आपको यूरिन की तकलीफ थी। कष्ट बहुत अधिक होने लगा। लेकिन गुरुणी मैया ने काफी कष्ट सहिष्णुता का परिचय दिया। धैर्यपूर्वक आपने कष्ट सहन किया। गुरुणी मैया की अस्वस्थता के समाचार तत्काल ही आसपास के ग्राम नगरों में फैल गए। इससे आपकी सेवा में दर्शनार्थियों का तांता लग गया।
उपचार :- वैसे तो कहावत है कि इदं शरीरं व्याधि मंदिरम। किंतु जब व्याधि अधिक बढ़ जाती है तो वह असह्य हो जाती है। महापुरुष इस पर भी बीमारी को समभाव से सहन कर लेते हैं। गुरुणी मैया से श्री संघों ने डोली अथवा ठेलागाड़ी से आगे की ओर बढ़ने का आग्रह किया। आत्मबली गुरुणी मैया ने कोई उत्तर नहीं दिया। इस छोटे से गांव में चिकित्सा सुविधायें जुटा पाना संभव नहीं हो पा रहा था, इधर रोग बढ़ता ही जा रहा था। अंततः संघ वालों ने निर्णय कर ही लिया और गुरुणी मैया के लिये ठेलागाड़ी की व्यवस्था कर साध्वियों ने वहां से विहार कर गुरुणी मैया को लेकर राजनांदगांव के स्थानक में प्रवेश किया। गुरुणी मैया के राजनांदगांव पधार जाने से सभी ने राहत का अनुभव किया। यहां चिकित्सा की उचित व्यवस्था हो गई। आपके आगमन के साथ ही चिकित्सा आरंभ हो गई। लेडी डाक्टर गुरुणी मैया को देखने दिन में चार बार आती। किंतु वे फीस आदि नहीं लेती थी। उनके उपचार से गुरुणी मैया को लाभ हुआ और शीघ्र ही स्वस्थ हो गई।
स्वास्थ्य लाभ हो जाने के कुछ दिन बाद में राजनांदगांव से विहार कर दिया। ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए गुरुणी मैया बालाघाट पधारी। यहाँ अच्छी जागृति रही। प्रवचनों की धूम मच गई। दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा। यहीं चांगाटोला से गुरुणी मैया के सांसरिक व ननिहाल पक्ष से कुछ व्यक्ति आए और सेवा में चांगाटोला पधारने की विनती की। गुरुणी मैया ने देश काल परिस्थिति पर विचार करते हुए चांगाटोला वालों की विनती स्वीकार कर ली। चांगाटोला में श्रीमान पन्नालालजी बोथरा, श्रीमान उत्तमचंदजी कटारिया आदि गुरुणी मैया के संसार पक्षीय भतीजी जवांई है। चांगाटोला पधारने पर भावभीना स्वागत हुआ। श्री संघ ने उत्साह और जागृति का संचार हुआ। चांगाटोला में कुछ दिनों तक स्थिरता रही। धर्म ध्यान की गंगा प्रवहमान हो चली। महावीर जयंती हर्षोल्लासपूर्वक मनाई गई। ओली तप भी हुआ। श्रावक श्राविकाओं में नयी जागृति आई। चांगाटोला में निम्नांकित जयघोष काफी प्रचारित रहा -
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