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________________ तैयारी देखी। मिश्रीमल की भावनाएं और ज्ञान को देखकर मजिस्ट्रेट स्वयं आश्चर्यचकित रह गये। मजिस्ट्रेट पर मिश्रीमल की बौद्धिक प्रतिभा का प्रभाव पड़ा। अंततः उसने दीक्षा की अनुमति प्रदान कर दी। चूंकि पिता श्री जमनालाल जी धाड़ीवाल का देहावसान हो चुका था, इसलिये ऐसा प्रतीत होता है कि परिवार के सदस्य नहीं चाहते हों कि मिश्रीमल दीक्षा ले। उसके दीक्षा ले लेने के पश्चात् श्री जमनालाल जी धाड़ीवाल के वंश का क्या होगा? कारण कुछ भी रहे हो, विघ्न उत्पन्न करने वाले दीक्षा नहीं रोक सके। रखकर गुरुदेव स्वामी दीक्षा की अनुमति मिल जाने के पश्चात् भी कुछ परिस्थितियों को ध्यान में श्री जोरावरमल जी म.सा. ने निर्णय कर लिया कि मिश्रीमल की दीक्षा किसी अन्य क्षेत्र में होना चाहिए। सभी प्रकार से विचार करने के पश्चात यह निश्चय किया गया कि दीक्षोत्सव अजमेर राज्य की 'भिणाय' ग्राम में आयोजित किया जाय। डाकू नहीं रक्षक:- शुभ मुहूर्त के अनुसार वैसाख शुक्ला दशमी वि.सं. १९८०, तदानुसार २६ अप्रैल, १९२३ को भिणाय ग्राम में दीक्षा की तैयारियां आरंभ हो गई। इस छोटे से ग्राम में दूर दूर दीक्षोत्सव में सम्मिलित होने के लिए हजारों की संख्या में धर्मप्रेमी नर-नारियों का आगमन आरंभ होने लगा। यहां होने वाले दीक्षोत्सव के समाचार भी आसपास ही नहीं दूरस्थ क्षेत्रो तक फैल गए। उन दिनों इस क्षेत्र में डाकू मोड़सिंह सक्रिय था। उसका उन दिनों लोगों पर काफी आतंक भी था। उससे क्षेत्र की जनता भयभीत भी थी । भिणाय ग्राम में हजारों की संख्या में लोग आयेंगे। ऐसे में कुछ भी अनहोनी घटना हो सकती है। इस आशंका से लगभग सभी भयभीत थे। एक दिन पांच वर्दीधारी व्यक्ति सिहू ग्राम से भिणाय आये। इन्हें देखकर उपस्थित जनसमूदाय भयभीत हो गया। गांव में कुछ भी अनहोनी की आशंका से आंतक छा गया तभी वे पांचों व्यक्ति गुरुदेव श्री जोरावरमल जी म.सा. की सेवा में पहुंचे और पूरी श्रद्धा भक्ति पूर्वक वंदन नमस्कार किया। गुरुदेव ने इन्हें देखा, मुस्करायें और लोगों को सम्बोधित कर कहा - " आप किसी प्रकार की भी आशंका न रखें। ये लुटेरे नहीं आपके रक्षक हैं।" गुरुदेव के वचनों को सुनकर लोगों ने राहत की सांस ली। इसके पश्चात लोगों को बताया गया कि ये सिहू के ठाकुर रुद्रदान जी, ठा. गोररुदान जी आदि हैं, ठाकुर रुद्रदान जी के लोगों में भयभीय होने का कारण पूछने पर उन्हें डाकू मोड़सिंह का आतंक बताया। डाकू मोड़सिंह ठाकुर रूद्रदान जी का बालसखा था। ठाकुर रुद्रदान सिंह जी गुरुदेव का आशीर्वाद लेकर डाकू मोड़सिंह से मिले, गुरुदेव के प्रभाव की चर्चा भी की। डाकू मोड़सिंह कहा- "मैं तो ऐसे ही अवसर की खोज में था। किंतु अब तुम्हारे आने से स्थिति बदल गई हैं तुम मेरे मित्र हो। तुम्हारे गुरु मेरे गुरु समझो। जाकर गुरुदेव से कह दो कि किसी भी प्रकार की चिंता न करें। दीक्षा के दूसरे दिन तक इस क्षेत्र में किसी को भी कोई क्षति नहीं होगी। यदि ऐसा होगा तो उसका उत्तरदायित्व मोड़सिंह का होगा । इस अवसर पर पुलिस का भी कड़ा प्रबंध था। दीक्षा में डाकू मोड़सिंह ऊंट पर सवार होकर आया । उसने गुरुदेव के दर्शन किये और दीक्षोत्सव में सम्मिलित होकर चला गया। उसके जाने के पश्चात् ही पुलिस को उसके आने का पता चला। यह सब धर्म का प्रभाव था और था गुरुदेव के पुण्य का चमत्कार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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