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जीवन के सच्चे कलाकारः
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मुनि श्री हजारीमलजी महाराज
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• -मुनि श्री महेन्द्रकुमार 'दिनकर' शास्त्री
जीवन सभी जीते है, किन्तु जीने की कला कोई विरला ही जानता है। जिसे हम 'जीवन कला' कहते है वह और कुछ नहीं, मनुष्य के जीने की एक शैली, एक उद्देश्य और एक तरीका है कि वह अपने आपको, जनहित में कितना खपाता है, अपने लिए स्वयं को कितना खपाता है, अपने परिपावं में किस प्रकार की भावना और विचारों की छाप छोड़ता हैं। इस दृष्टि से देखने पर स्व. मुनि श्री हजारीमल जी महाराज जीवन के सच्चे कलाकार सिद्ध होंगे।
उनके जीवन में भगवान महावीर का यह जीवन दर्शन पूर्णतः साकार हुआ थासदा सच्चेण संपन्ने मेत्तिं भूएसु कप्पए सदा सत्य से युक्त रहो! अपने प्रति भी, समाज के प्रति भी सच्चे रहो और सभी प्राणियो के साथ मित्रवत् व्यवहार करो।
स्वामीजी सत्य के कट्टर समर्थक थे। सत्य के लिए वे अपने गुरु और शिष्य की भी परवाह नहीं करते. यहां तक कि सत्य के लिए उन्होंने प्राणों की परवाह नहीं की। सत्य की साधना से वे 'अभ गये थे। सत्य के साथ अहिंसा की साधना में इतने गहरे उतर गये थे कि जीवन के प्रति कोई ममत्व उनमें नहीं रहा। इसलिए वे किसी से भयभीत नहीं होते थे।
• खरे थे, खारे नहीं कभी-कभी यह देखा जाता है कि सत्य का कट्टर समर्थक कहलाने वाला एकान्त आग्रही बन जाता है। उसकी दृष्टि में समन्वय, उदारता और समता रस की कमी आने लगती है वह 'खरा' तो होता है, पर धीरे-धीरे समाज में खारा भी बन जाता हैं। स्वामी श्री हजारीमल जी महाराज के जीवन में यह दोष नहीं आया था।
एक घटना है। स्वामी जी एक बार वर्षावास हेतु तिंवरी पधारे। चातुर्मास से कुछ पूर्व ही वहां पधार गये। वहां पर मारवाड़ के अल्हड़ संत बाबा के नाम से प्रसिद्ध श्री पूर्णमलजी महाराज विराजमान
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