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साध्वीरान थी। सतीजी के प्रतिभा पूर्ण प्रवचनों का प्रभाव मगनकुंवर बाई पर ऐसा पड़ा कि उनके हृदय में वैराग्य की भावना हिलोरें लेने लगी ।
जब सतीजी श्री चोथांजी ने 'सिहू' से प्रस्थान किया तो मगनकुंवर बाई भी अपने पुत्र जोरावर लेकर सतीजी के साथ सिहू से रवाना हो गई।
जब सतीजी पारसनाथजी की फलोदी (मेड़तारोड़) पहुंची तो मगनकुंवर बाई ने अपना निर्णय सतीजी के सामने रख दिया और स्वयं ने श्वेतवस्त्र धारण कर लिए।
मगनकुंवर बाई ने अपने ससुराल भी यह सूचना भेज दी कि “मुझे व जोरावर को दीक्षा लेना है। अतः • आप हमारे लिए अनुमति भेज दीजिए, जिससे इस दीक्षा व्रत को सुलभता के साथ ग्रहण कर सकें।” इस सूचना के पाते ही बाईजी के जेठजी मेड़तारोड़ पहुंचे और क्रोध से आग-बबुला होकर उन्होंने श्वेतवस्त्र धारिणी मगनाजी को लट्ठियों से पीटना प्रारंभ कर दिया ।
लगभग बीस बार लट्ठियों का प्रहार जेठजी ने भगनाजी पर कर दिया। इतना होने पर भी मगनाजी अपने विचारों से विचलित नहीं हुई। अंकपभाव से मगनाजी ने अपने जेठजी से कहा कि आपकी ओर से बीस बार लट्ठियों का प्रहार हो गया हैं। अब इक्कीसवां प्रहार आपके ऊपर मेरा रहेगा अर्थात् मुझे अवश्यमेव संयम ग्रहण करना हैं ।
मगनाजी की यह बात सुनकर उनके जेठ के मुख से यह बात फूट पड़ी - "तुम खुशी से दीक्षा ग्रहण कर सकती हो पर जोरावर को मेरे साथ भेज दो।”
अपने जेठ के मुख से इतना सुनते ही मगनादेवी ने कहा कि बस हो गया मेरा कार्य सिद्ध । आपने मुझे तो दीक्षा लेने की अनुमति प्रदान कर ही दी और जोरावर पर तो एकमात्र मेरा ही स्वाधिकार है, अतः मैं स्वयं आज्ञा देकर उसे दीक्षित कर दूंगी।
इस प्रकार मगनकुंवरबाई स्वयं ने तो भागवती दीक्षा ग्रहण की ही साथ में अपने होनहार प्रिय पुत्र जोरावर को दीक्षा दिलवाकर श्रमणसंघ को एक अमूल्य रत्न भेंट किया।
वि.सं. १९२६ की अक्षय तृतीया स्वामीजी श्रीजोरावरमलजी महाराज का जन्म दिवस था और वि.सं. १९४४ की लक्षय तृतीया उनकी दीक्षा - दिवस था ।
नागौर उनकी दीक्षाभूमि थी। स्वामीजी उस समय के सुप्रसिद्ध वैयाकरण और चर्चावादी सन्त परम श्रेद्वय स्वामीजी श्रीफकीरचन्दजी महाराज के शिष्य - रत्न बने ।
स्वामीजी श्री फकीरचन्दजी महाराज के सोलह शिष्य थे, उनमें स्वामीजी उनके सबसे छोटे शिष्य
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योग्य गुरुः योग्य शिष्यः बचपन से ही स्वामीजी में सर्वतोमुखी प्रतिभा थी । अतः उनका अध्ययन अतीव उच्चतम रहा । योग्यतम गुरुदेव की सेवा में रहकर शिष्य योग्यतम बनें- इसमें अतिशयोक्ति भी क्या ?
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