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________________ 880000666000 विशिष्ट वैरागी ज्ञानाभ्यासी स्वामीजी श्री जोरावरमलजी महाराज • साध्वी श्री उमरावकुंवर 'अर्चना' • जन्म-स्थान- सिह गांव (नागौर राजस्थान) • जन्म-दिवस- वि.सं. १९३६, अक्षय तृतीया • दीक्षा-दिवस- वि.सं. १९४४ अक्षय तृतीया (नागौर) • स्वर्गवास-दिवस- वि.सं. १९८६ ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्थी (भुवाल) यह भारत-भूमि अवतारों की जन्मभूमि, वीरों की कर्मभूमि, साधकों की साधना-भूमि और दार्शनिकों की चिन्तन-भूमि रही हैं। इस भूमि में अनेक अनेक समाज-रत्न और सन्त-रत्न उत्पन्न हुए हैं। इन महापुरुषों ने विश्वभर में सात्विक स्नेह की सुनिर्मल सरस सरिता बहाई, अपने तप:पूत जीवन से जन-मानस को जागृत किया और अपने सदाचरणों से सर्वत्र सद्गणों की सौरभ फैलाई। ऐसे नर-रत्नों के नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं,उनमें एक नाम मेरे पूज्य दादागुरु स्वामीजी श्री जोरावरमलजी महाराज का भी हैं-इनका जीवन-इतिवृत्त इस प्रकार हैं। • बचपन में वैराग्य मेड़ता के पास गोठन स्टेशन के अति-निकट एक लघुतम ग्राम हैं, 'सिंह'। वहां इस समय तो सिर्फ प्रमुख बस्ती हैं चारणों की, परन्तु पहले वहां ओसवाल जाति की भी काफी अच्छी बस्ती थी। इस 'सिंहू' गांव में स्वामीजी श्री जोरावरमलजी महाराज का जन्म हुआ था। श्रीरिद्धकरणजी बोथरा उनके पिताजी थे और मगनकुंवर बाई उनकी माताजी थी। स्वामीजी के बचपन में ही उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। उसके बाद शीघ्र ही उन्होंने तथा उनकी माताजी ने संयम ग्रहण करलिया। बालक जोरावर तथा उनकी माताजी जी की दीक्षा बड़ी कठिनाइयों के बीच हुई थी। अनेक परीषहों को सहन करने के पश्चात् दोनों माता और पुत्र दीक्षित हो सके थे। . दोनों की दीक्षा का घटनाक्रम यह हैं कि एक बार मेरी दादागुरणीजी श्रीचौथांजी महाराज अपनी शिष्या-मण्डली के साथ 'सिहू' पधारी थी। सतीजी श्रीचौथांजी अपने समय की एक सुप्रसिद्ध ख्याति-प्राप्त (२०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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