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________________ आपका स्वर्गवास हुआ संवत् १९६५ की वैशाख कृष्णा पंचमी को। कहीं-कहीं आपकी आयु का उल्लेख है-६१ वर्ष ६ माह। इस तरह आपका जन्म संवत् १९०४ माना जा सकता हैं। आचार्य श्री कानमल जी महाराज धवा ग्राम के श्री अंगराज की पारिख की धर्मपत्नी तीजांदेवी की कुक्षि से संवत् १९४८ की माघ सुद पूर्णिमा को आपका जन्म हुआ। कार्तिक शुक्ला अष्टमी सं. १९६२ के दिन चौदह वर्ष की अवस्था में आपने महामन्दिर (जोधपुर) में पूज्य श्री भीकमचंद जी म. के सान्निध्य में दीक्षा स्वीकार की। आप आचार्य-पद पर प्रतिष्ठित किए गए कुचेरा में ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी, संवत् १९६५ को। आपमें असाधारण प्रतिभा थी, आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली था, आप संयम-निष्ठ थे तथा आप में अनुशासित रहने एवं अनुशासन में रखने की अनुपम क्षमता थी। संवत् १९८५ की माघ कृष्णा पंचमी को आप स्वर्गवासी हुए। वि.सं. १९८५ में आचार्य श्री कानमल जी म.सा. का स्वार्गवास होने के तीन वर्ष पश्चात् वि.सं. १९८९ में पाली में छः सम्प्रदायों का एक मनि सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मे मनि श्री हजारीमल जी म.सा. को प्रवर्तक और मनि श्री चौथमल जी म. सा. को मंत्री पद पर नियक्त किया गया। वि.सं. २००४ तक इन्हीं को नेतृत्व में सम्प्रदाय की व्यवस्था चलती रही और आचार्य पद रिक्त ही रखा। अंतत: कुछ विचारशील सज्जनों के प्रयासों से वि.सं. २००४ में मुनि श्री मिश्रीमल जी म.सा. 'मधुकर' को आचार्य पद पर समारोह पूर्वक प्रतिष्ठित किया गया और आपको आचार्य श्री जसवन्तमल जी म. सा. के नाम से अभिहित किया गया। कुछ समय पश्चात् ही/आपने अपनी प्रकृति के कारण आचार्य पद का त्याग करने का निर्णय कर लिया और अंतत: आपने आचार्य पद का त्याग कर त्याग का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। आपका विस्तृत जीवन परिचय इसी पंथ में आगे दिया जा रहा हैं। (१९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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