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________________ आचार्य श्री हीराचंदजी महाराज आपका जन्म बिराई ग्राम (राजस्थान) कांकरिया गोत्रीय श्री नरसिंह जी की धर्मपत्नी गुमान-देवी की कुक्षि से सं. १८५४ की भाद्रपद शुक्ला पंचमी को हुआ। संवत् १८६४ में आश्विन कृष्णा तृतीया को सोजतनगर में पूज्य श्री आसकरणजी म. ने आपको दीक्षित बनाकर संयम-पथ पर आरुढ़ किया। जोधपुर में संवत् १९०३ की आषाढ़ शुक्ला नवमी के दिन आप आचार्य श्री सबलदास जी म. के पट्टधर बने और आचार्य-पद पर शोभित हुए। __ आपने पांच योग्य विरक्तात्माओं को दीक्षा दी। जिनके नाम हैं-१. श्री किशना जी म., २. श्री कल्याण जी म., ३. श्री किस्तुरचन्द जी म., ४. श्री मूलचन्द जी म. और ५. श्री भीकमचन्द जी म.। लगभग ६६ वर्ष की उम्र में संवत् १९२० की फाल्गुण कृष्णा सप्तमी के दिन आप स्वर्गवासी हुए। आचार्य श्री किस्तूरचंद जी महाराज आपका जन्म हुआ था-विसलपुर में। पिता थे श्री नरसिंह जी मुणोत तथा माता का नाम कुन्दनादेवी था। जन्म-तिथि के बारे में मतभेद हैं। 'जयध्वज' ग्रन्थ में छपी पट्टावली तथा स्वामी श्री चौथमल जी म. की 'पूज्य गुणमाला' नामक पुस्तक में आपकी जन्म तिथि संवत् १८८९ का फाल्गुण कृष्णा तृतीया है, जबकि 'मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रंथ' तथा ज्योतिर्धर जय (मु.मधुकर जी) में संवत् १८९८ का उल्लेख मिलता हैं। दीक्षा-तिथि में भी इतना ही अन्तर मिलता हैं। पूर्व मतानुयायी इनकी दीक्षा-तिथि मानते हैं संवत् १८९८ की जबकि पश्चात्वर्ती मान्यतानुसार आपकी दीक्षा १९०७ में पाली में हुई थी। आचार्य-पद पर आप शोभित हुए संवत् १९२० की फाल्गुण शुक्ला पंचमी को। आपके चार सुयोग्य शिष्य थे-१. श्री प्रतापमल जी म., २. श्री सोहनलाल जी म., ३. श्री मूलचन्द जी म. और ४. श्री भीकमचंद जी म.। आपकी स्वर्गवास-तिथि के बारे में भी मतभेद हैं। प्रथम मान्यता हैं, संवत् १९६० की भाद्रपद शुक्ला पंचमी, जबकि दूसरी मान्यता में सं. १९६८ का उल्लेख मिलता हैं। ११ आचार्य श्री भीकमचंद जी महाराज जन्मभूमि चौपड़ा ग्राम। गोत्र बरलोटा (मूथा): पिता श्री रतनचंद्र जी, माता श्रीमती जीवादेवी। जन्म-तिथि का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। दीक्षा-तिथि भी अभी तक प्राप्त नहीं। हाँ, युवावस्था में दीक्षित हुए। दीक्षा के समय अविवाहित थे। आपके दीक्षा-गुरु थे पूज्य श्री किस्तूरचंद जी म.। आचार्य-पद पर संवत् १९६० के भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा को जोधपुर में प्रतिष्ठित हुए। शिष्य थे दो- १. श्री कानमल जी म. २. श्री मनसुख जी म.। श्री कानमल जी म. इनके बाद आचार्य बने। चूंकि आचार्य श्री किस्तूरचंद जी म. के पाट पर आचार्य श्री भीकमचंद्र जी म. आचार्य-पद पर प्रतिष्ठित होने की तिथि सन् १९६० की भादवा युद १५ है, अत: प्रथम मान्यता ही सही मालूम पड़ती है। (१८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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