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________________ आप अपने समय के अत्यन्त ज्ञानवान् संत थे, सफलकवि एवं ओजस्वी प्रवचनकार थे। आपने कथात्मक, स्तुत्यात्मक, उपदेशात्मक एवं तत्वात्मक रूप से विशाल साहित्य की रचना की। आपकी समस्त रचनाओं को बड़े श्रम से एकत्र कर श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, जयपुर में सुरक्षित रखा गया है। आपकी रचनाओं के समीक्षात्मक अध्ययन में प्रकाशन की अपेक्षा हैं। . ऐसा उल्लेख मिलता हैं कि आपने ७ शिष्यों को दीक्षा दी पर अधिकृत रूप से पांच शिष्यों के नाम एवं विवरण ही प्राप्त हुए हैं। उनके नाम है-१. श्री आसकरण जी म., २. श्री दीपचन्द जी म., ३. श्री गुमानचन्द्र जी म., ४. श्री कुशालचन्द्र जी म. और ५. श्री धनरूप जी म.। नागौर में संवत् १८५३ की ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया को आप आचार्य पर सुशोभित हुए। लगभग ५४ वर्ष से कुछ अधिक आपकी दीक्षापर्याय थी। ७२ वर्ष की आयु में संवत् १८६८ की माघकृष्णा चतुर्दशी को जोधपुर में आप स्वर्गवासी हुए। आप आयु के अन्तिम भाग में लगभग १० वर्ष ठाणापति रहे। आचार्य श्री आसकरण जी महाराज आपका जन्म मार्गशीर्ष कृष्णा द्वितीया, संवत् १८१२ को जोधपुर-मारवाड़ परगनान्तर्गत तिंवरी ग्राम में रूपचन्द जी बोधरा के घर 'गीगां दे' की कुक्षि से हुआ। आपको अपनी सगाई के समय वैराग्योत्पत्ति हुई। आपने वि.सं. १८३० की वैशाख कृष्णा पंचमी के दिन तिंवरी में पूज्य आचार्य श्री जयमल जी महाराज के पास दीक्षा धारण की। आचार्य श्री रायचन्द्र जी ने अपने जीवन-काल में संवत् १८५७ की आषाढ़ कृष्णा पंचमी को आपको युवाचार्य घोषित किया। आचार्य श्री आसकरण जी अपने समय के एक अच्छे कवि माने जाते थे। आपने दस भव्यात्माओं को दीक्षा दी। जिनके नाम हैं-१. श्री सबलदास जी म., २. श्री हीराचंद जी म., ३. श्री ताराचंद जी म., ४. श्री कपूरचन्द जी म., ५. श्री बुधमल जी म., ६. श्री नगराज जी म., ७. श्री सूरतराम जी म., ८. श्री शिवबक्ष जी म., ९. श्री बच्छराज जी म. और १०. श्री टीमकचन्द जी म.। आप संवत् १८६८ की माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन मेड़ताशहर में आचार्य-पद पर सुशोभित हुए। संयम का दृढ़ता से पालन करते एवं जिनधर्म की प्रभावना करते लगभग ७० वर्ष की आयु में संवत् १८८२ की कार्तिक कृष्णा पंचमी को आपका स्वर्गवास हुआ। आचार्य श्री सबलदास जी महाराज जन्म स्थान पोकरण। जन्म-तिथि भाद्रपद शुक्ला द्वादशी, संवत् १८२८। पिताश्री आनन्दराज जी लूणिया, माता श्रीमती सुन्दरदेवी। दीक्षा आपकी हुई बुचकला ग्राम में, संवत् १८४२ की मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया के दिन, आचार्य श्री रायचंद्र जी म.के पास। युवाचार्य-पद मिला संवत् १८८१ की चैत्र शुक्ला पूर्णिमा को तथा आचार्य-पद पर शोभित हुए संवत् १८८२ की माघशुक्ला त्रयोदशी को, जोधपुर में। शिष्य हुए पांच, जिनके नाम हैं-१. श्री विरदीचंद जी म., २. श्री पृथ्वीचन्द्र जी म., ३. श्री कर्मचन्द जी म., ४. श्री हिम्मतमल जी म., और ५. (नाम अनुपलब्ध)। (१७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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