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________________ प्रकाण्ड विद्वान मुनि श्री नारायणदास जी महाराज। मुनि जयमल जी प्रतिभा सम्पन्न तो थे ही, लगन एवं धुन के के थे। एक बार आपके एकान्तर-उपवास का पारणा था। प्रात:काल आप कछ पढे हए सूत्र-पाठों को कंठस्थ करने बैठ गए। मन शायद एकाग्र नहीं बन पा रहा था, अत: सदेर पकड़ में नहीं आ रहे थे। अपने आप पर खीझते हुए इन्होंने मन ही मन दृढ़ संकल्प कर लिया कि जब तक सूत्र-पाठ कंठस्थ नहीं कर लूं, मैं गोचरी नहीं जाऊंगा, आहार-पानी ग्रहण नहीं करूंगा। एक प्रहर बीत गया। बस, इस एक प्रहर में मुनि श्री जयमल जी ने पांच सूत्र कंठस्थ कर डाले। ये पांच सूत्र थे-कप्पिया, कप्पवडंसिया, पुफिया, फुप्फचूलिया और वण्हिदशा। यह देख कर आचार्य श्री भूधर जी, मुनि श्री नारायणदास जी एवं सभी संत आश्चर्यान्वित हुए। बहुत ही कम समय में आपने जैन एवं जैनेतर समाज में महान् तपस्वी, प्रकाण्ड विद्वान, प्रखर, प्रतिभावान, धर्म-प्रभावक एवं ओजस्वी व्याख्याता मुनि श्री के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली। धर्मोपदेश द्वारा प्रभावित हो लक्ष्मी देवी ने संसार का त्याग कर 'लाम्बिया' में ही आचार्य श्री भूधर जी महाराज के पास दीक्षा ली। और उग्र तपस्या कर छह माह के अल्प समय का संयमी जीवन बिता ‘महासती लाछां दे' काल-धर्म को प्राप्त हुई। पुष्कर के शांत एवं मनोरम वातावरण में आपके हृदय का कोमल कवि जगा और प्रथम बार काव्य-स्फुरणा हुई। रायपुर में गुरुवर के आदेश से प्रथम प्रवचन दिया और धीरे-धीरे प्रवचन देने में ऐसे , निखरे कि जहां गए, वहीं हजारों जैन व जैनेतर मतानुयायियों को प्रभावित किया। अमीर-उमराव, ठाकुर-जमींदार, राजा-महाराजा एवं शाहजादा-बादशाह भी आपके प्रवचनों से मुग्ध बने, प्रभावित हुए। पीपाड़ शहर में आपने शिथिलाचारी “पोतियाबंधों” को सन्मार्ग दिखलाया। गए थे गोचरी लेने पर लौटे तो पातरे खाली थे और लोगों की भीड़ उनके साथ थी। पूज्य भूधर जी महाराज ने पूछा-ले आए.गोचरी? मुनिवर ने कहा-“आज स्थूल आहार की गोचरी नहीं ला सका। आज तो धर्म के श्रद्धावानों की गोचरी लाया हूं।” पूरी बात आचार्य श्री को ज्ञात हुई तो वे बहुत प्रसन्न हुए। पीपाड़ के पोतियाबंध श्रावकों को भी आज सत्य-धर्म की पहचान हुई। ये पोतियाबंध धर्म के नाम पर लोगों को ठगते, आडम्बर फैलाते थे। अपने शिथिलाचार को छुपाने और अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए धर्म-शास्त्रों को पोथियों में लिखते थे अतः पोथियापंध कहलाए। बाद में ये लोग गृहस्थी की तरह वेशभूषा रखने लगे और सिर पर भी पोतिया (साफा) बांधने लगे अत: पोतियाबंध कहलाए। इन लोगों ने पूजा-पाठ एवं देवद्रव्य-व्यवस्था में अपनी उपयोगिता बतानी प्रारंभ कर दी थी। गोचरी जाते हुए मुनि जयमलजी ने किसी पोतियाबंध की उल्टी-सीधी बातें जैनधर्म एवं उसके संतों के बारे में सुनी और बस करने लगे उससे चर्चा, पोतियाबंध के उपाश्रय में संत का आगमान देख सभी को आश्चर्य हुआ। कुछ श्रावक तो पहले से वहां थे ही, कुछ और इकट्ठे होने लगे। जयमल जी ने शास्त्र-निहित सत्य-तथ्यों का प्रमाण देकर सारी बात बताई तो उपस्थित जन-समुदाय को लगा कि वे अब तक गलत राह पर थे। पोतियाबंधों के शिथिलाचार का इसतरह भंडाफोड़ किया मुनि श्री जयमल जी ने और श्रद्वावान भक्तों की भीड़ को अपने साथ ले आए, गुरुदेव भूधर जी की शरण में। मुनि श्री द्वारा की गई इस क्रांति की छाप आस-पास के क्षेत्रों पर भी पड़ने लगी। (१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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