SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि श्री जयमलजी के इस धर्म-जादू की बात जोधपुर तक पहुँची। जोधपुर के तत्कालीन महाराजा श्री अभयसिंह जी ने अपने दीवान रतनसिंह जी को आचार्य श्री भूधर जी महाराज के पास भेजा तथा मुनि श्री जयमल जी सहित जोधपुर पधार कर दर्शन देने की विनती अर्ज करवाई। संतों के जोधपुर पहुंचने पर जोधपुर-नरेश ने राजकीय ठाट-बाट सहित बनाड़ पहुंच कर उनकी अगवानी की। जोधपुर में मुनि-श्री के ओजस्वी प्रवचनों की बड़ी धूम मची। स्वयं जोधपुर नरेश प्रतिदिन प्रवचन में जाते। उनका रनिवास भी प्रवचनों में रस लेने लगा। राज्य के कई उच्चाधिकारी भी नित्य प्रवचन सुनने लगे। साधारण जनता की तो बात क्या? जोधपुर से विहार के समय जोधपुर-नरेश ने, राज्याधिकारियों ने एवं बड़े-बड़े सेठ-श्रीमन्तों व भक्तों ने जोधपुर-चातुर्मास की आग्रहभरी, भावभीनी विनती पूज्य भूधर जी महाराज की सेवा में प्रस्तुत की। बुचकला गांव के ठाकुर साहब ने आपके ही उपदेशों से प्रभावित होकर शिकार, मद्यपान एवं मांस-भक्षण का त्याग किया। सिरोही पहुंचने पर सिरोही-नरेश मानसिंह जी भी उनसे बहुत प्रभाक्ति हुए। सिरोही-नरेश की पुत्री जोधपुर राज्य की महारानी थी और वे अभी वहीं आई हुई थी। पिता-पुत्री दोनों संत-दर्शनार्थ आये, प्रवचन सुन बहुत ही प्रभावित हुए। एक माह तक संत सिरोही विराजे। सिरोही-नरेश ने अधिक से अधिक लोग उनका व्याख्यान सुन सकें, इस हेतु विशाल-पंडाल बनवा दिया तथा अन्य अनेक सुविधाओं का भी प्रबन्ध करवाया। वे स्वयं भी नित्य प्रवचन सुनने आते। आचार्य श्री एवं मुनि श्री जयमल जी के वे अत्यंत श्रद्धालु भक्त बन गये। पूज्य श्री भूधर जी महाराज जब दिल्ली पधारे तो वहां भी जयमल जी के प्रवचनों की धूम च गई। एक तो ऐसे निस्पृह संत फिर ऐसा ऊंचा ज्ञान। जोधपुर-नरेश दिल्ली पधारे तो गुरु-दर्शनार्थ आये। उनके साथ उनके मित्र सात रियासतों के ठाकर भी पधारे। मनि जयमल जी का प्रवचन सभी ने सना और मनपम शांति का अनभव किया। प्रवचन के बाद मांगलिक सनकर जब ये सभी दिल्ली-दरबार में पहुंचे तो बादशाह महम्मदशाह पछ बैठे-"क्या नाराजगी है? आज आप सब इतनी देर से कैसे पधारे हैं?' जोधपुर-नरेश ने जब बताया कि वे सभी एक पहंचे हए जैन संत के दर्शनार्थ गये थे, वहां ऐसा जादभरा प्रवचन चल रहा था कि उठकर आ ही न सके तो बादशाह ने उन संतों के बारे में कुछ और प्रश्न किये? उनके निस्पृह और अपरिग्रही जीवन एवं अगाध-ज्ञान की बातें सुनकर वह भी बड़ा प्रभावित हुआ और उनकी प्रशंसा किये बिना न रह सका। शाहजादा ने तो उन महापुरुषों के दर्शनों की इजाजत भी मांगी, जो उसे सहर्ष मिल गई। शाहजादे ने अगले दिन संतों के दर्शन किए, मुनि श्री जयमल जी का प्रवचन सुना, उनसे अपने मन की कई शंकाओं का समाधान प्राप्त किया और अत्यंत सन्तुष्ट होकर सौगन्ध ली कि वह जीवन में कभी बेगुनाह जानवरों को स्वयं मारेगा नही, दीन-दुःखियों के साथ न्याय करेगा और सभी पर रहम करेगा। अपने शाहजादे को इस तरह प्रत्याख्यान करते देख साथ में आए हुए कितने ही राजा-महाराजाओं, अमीर-उमरावों, ठाकुर-जमींदारों ने यथाशक्ति भावनानुसार व्रत-प्रत्याख्यान लिये। इस तरह दिल्ली के राज्याधिकारियों में और साधारण भक्तजनों में दिन-ब-दिन मुनि श्री जयमल जी के प्रवचनों का प्रभाव बढ़ता गया, सत्यधर्म का प्रचार हुआ एवं जिन-धर्म की प्रभावना हुई। इसी चातुर्मास में दिल्ली-चातुर्मास के यश-कलश सेठ श्री सूरजमलजी को श्री भूधर जी महाराज के आदेश पर मुनि जयमल जी ने अपना शिष्य स्वीकार कर दीक्षित किया। उनका यह प्रथम शिष्य तपस्वी बना और अल्पकाल की संयम-साधना कर काल-धर्म को प्राप्त हुआ। (१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy