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________________ आचार्य श्री भूधर जी महाराज नागौर निवासी श्री माणकचंद जी मुणोत की धर्मपत्नी रूपांदे की पावन-कुक्षि से १७१२ सं. की विजयादशमी (आश्विन शुक्ला दशमी) के दिन एक भाग्यवान बालक ने जन्म लिया। आप दिखने में अति सुन्दर, बुद्धि से प्रतिभा-सम्पन्न एवं शक्ति-शौर्य के भण्डार थे। भाग्य ने बचपन में ही आपके सिर से माँ-बाप का साया उठा लिया। आपने अपनी रुचि के अनुसार सैनिक शिक्षा प्राप्त कर उसमें निपुणता हासिल की एवं योग्यता के बल पर सेना में उच्च स्थान पाया। कुछ समय पश्चात् आज सोजत शहर में कोतवाल के पद पर नियुक्त हुए। आपके सद्गणों, आपकी योग्यता, प्रतिभा एवं आपके शौर्य से प्रभावित होकर सोजत निवासी शाह दल्ला जी रातड़िया ने अपनी सुन्दर, सुशील एवं गुणसम्पन्न कन्या का विवाह आपके साथ कर दिया। सोजत में कोतवाल-पद पर नियुक्त होते ही आपने डाकू-सफाया अभियान चलाया और अब तक डाकुओं से आंतकित सोजत की जनता को आंतक-मुक्त किया। इससे श्री भूधर जी सोजत शहर में अधिक लोकप्रिय हो गए तथा चोर-डाकुओं में श्री भूधर जी का भय छा गया। निकटस्थ ग्राम-नगर के ठाकुर, जमींदार आपकी बड़ी इज्जत करने लगे। एक बार संवत् १७४० में कंटालिया ग्राम पर ८४ डाकुओं ने धावा बोल दिया। सभी डाकू ऊँट ' पर असवार थे। जैसे ही आपको इसकी सूचना मिली आप तुरन्त अपनी प्रिय ऊंटनी (सांडनी) पर सवार होकर फौजी टुकड़ी के साथ कंटालिया की ओर चल पड़े। तीव्र गति से चलते हुए ऊंटनी को दौड़ाते, हवा से बातें करते श्री भूधर जी शीघ्र कंटालिया के निकट पहुंच गए। डाकुओं को उनके आने की खबर मिली तो वे भय से भाग खड़े हुए। “भागो, भूधर आया।"-ये शब्द थे जो डाकुओं के मुख से उस समय निकले। श्री भूधर जी ने उनका पीछा किया। कुछ ही पलों में वे उनके बराबर पहुंच गए। उनके हाथ में तलवार चमक उठी। भूधर का मुकाबला डाकू क्या कर पाते? उन्होंने चाल चली और उनकी प्रिय सांडनी की गर्दन पर दूर से कटार फैकी, कटार आई और सांडनी की गर्दन में खुप गई। कटी गर्दन लटक गई पर सांडनी दौड़ती रही। बड़ा मार्मिक दृश्य था। डाकुओं के तो होश ही गायब हो गए। कई डाकू घबरा कर, ऊंटों से गिर गए; उनके साथी उन्हें ऊंटों से कुचलते चले गए। अंत में उस सांडनी की गति धीमी हुई। वह रुकी, बैठी भूधर नीचे उतरे और सांडनी ने दम तोड़ दिया। अपने अत्यन्त प्रिय एवं वफादार पशु की मौत ने भूधर जी के हृदय में हाहाकार मचा दी। वे घर पहुंचे, पर मन को चैन कहां; नौकरी पर गए, वहां भी मन अशांत! रह-रहकर उनकी आंखों के समक्ष गर्दन कटी सांडनी, दम तोड़ती सांडनी खून से लथपथ सांडनी घूमने लगी। आपने जोधपुर नरेश की सेवा में अपने कोतवाल-पद का त्याग-पत्र भेज दिया और अपना अधिकांश समय आध्यात्मिक चिन्तन में बिताने लगे। संसार की असारता, नश्वरता, अवश्यंभावी मृत्यु आदि पर गहन चिन्तन-मनन होने लगा। वे अब धर्म-स्थानकों में फिरने लगे, योगी-यती एवं फकीरों की संगति करने लगे। सोजत में पोतियाबन्द यतियों का बड़ा प्रभाव था। भूधर जी की पत्नी उन्हें मानसिक शान्ति के लिए इन यतियों के पास ले गई। हवा का रुख देखकर उन्होंने कह दिया- इन पर सांडनी की आत्मा का ओछाया हैं।" भूधर जी इन पोतिया-बन्द गुरांसा की नेश्राय में रहने लगे। किन्तु वहां सच्चा तप, त्याग, चारित्र कहां था? वहां तो मंत्र-तंत्र की साधना, गादी प्राप्त करने के लिए षड़यंत्र, धन-प्राप्ति एवं उसके उपभोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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