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आत्मदृष्टा साधिका महासती पुष्पवतीजी महाराज परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर इन्हीं उपाधियों की शोभा एक ऐसी ही विभूति हैं जिन्होंने आत्मसाधना के बढ़ाई है तथा जैन आगम दर्शन आदि भारतीय कंटकाकीर्ण पथ पर अपने अडिग-चरण बढ़ा कर न दर्शनों का अध्ययन करके अनेक उत्तम धर्मग्रन्थों केवल अपनी पवित्र आत्मा को और अधिक निर्मल का सृजन किया है। इन ग्रन्थों में दशवैकालिक सूत्र. बनाया हैं, बल्कि समस्त स्थानकवासी जैन समाज पुष्प पराग, किनारे-किनारे, सती का शाप, प्रभाका पथ प्रदर्शन करके उस पर परम उपकार वती शतक, साधना-सौरभ आदि प्रकाशित ग्रन्थ किया है।
विशेष उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा सम्पादित ग्रन्थों चंदन वृक्ष के समीप जाने से जिस प्रकार सुरभि की सूची तो बहुत लम्बी है। प्राप्त होती है, शुभ चन्द्रिका से जिस प्रकार शीत
जब पुण्योदय होता है तो अनुकूल प्रसंग भी लता प्राप्त होती है, उसी प्रकार महासती पुष्पवती
___ आप से आप ही जुड़ते जाते हैं। महासतीजी जी के सानिध्य में रहने से संसार जाल में जकड़े
पुष्पवती के जीवन में भी यही घटित हुआ। माताहुए व्यक्तियों को परम आत्मशान्ति का अनुभव होता
पिता धर्म प्रेमी प्राप्त हुए । भाई के रूप में साहित्य है। संसार तो आशा-निराशा का एक झूला है, सुख- वाचस्पति देवेन्द्र मुनिजी महाराज प्राप्त हुए । दुख की धूप-छाँह है, इसमें दोलित होते हुए व्यक्तियों
वातावरण वैराग्यमय मिला। एक सजग, साधनाको महासतीजी के जीवन दर्शन से अपना खोया हुआ
मय, तपस्वी आत्मा को और क्या चाहिए था? प्रकाश विश्वास, टूटा हुआ मनोबल तथा विलुप्त होती हुई
का, पूण्य का प्रशस्त पथ सम्मूख था-वे उस पर आस्था पुनः प्राप्त होती है। जो भी लोग कुछ
अडिग चरणों से आगे बढ़ चली। ज्ञान का दोपक समय के लिए भी उनके सान्निध्य में आते हैं अथवा
गुरुणी जी म० सा० ने उनके अचंचल उनके सदुपदेश का श्रवण करते हैं, उनकी दृष्टि में
हाथों में थमा दिया। बस, फिर उन्होंने कभी पीछे आत्म-साधना का उज्वल, प्रकाशित क्षेत्र प्रकट हो
मुड़कर नहीं देखा । वे आत्म-साधना, आत्म-संयम जाता है तथा उन्हें परम शान्ति की अनुभूति होती
तथा गहन तप के मार्ग पर आगे ही बढती चली है। उनके मन में यह विश्वास जागता है कि हम
गई और आज भी आगे बढ़ रही है। उनका हृदय भी यदि प्रयत्न करें तो आगे बढ़ सकते हैं, अपनी
आलोकित है तथा वे लोक को भी आलोकित कर मुक्ति का मार्ग खोज सकते हैं। महासतीजी परम विदूषी हैं। जैन समाज के
रही है।
ऐसी परम तपस्विनी, आत्म-दृष्टा साधिका गौरव, ज्ञान-महोदधि, पंडित रत्न श्री शोभाचन्द्र ।
महासती पुष्पवती जी महाराज का अभिनन्दन ग्रन्थ जी भारिल्ल, पंडित रमाशंकरजी शास्त्री जैसे ज्ञानी
प्रकाशित हो रहा है, यह परम हर्ष का विषय है। विद्वान से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की है तथा जैन शास्त्रों
यह सर्वथा उचित भी है। हम उनके उज्वल, आदर्श का अध्ययन किया है। सोने और सुहाग की कहावत भविष्य हेत शुभकामना करते हैं। शभाशीवाद चरितार्थ हुई है। महासती पुष्पवतीजी जैसी
प्रदान करते हैं। साधिका और पंडित शोभाचन्द्रजी भारिल्ल जैसे विद्वान का सुयोग मिलने से महासतीजी की साधना में कितना सुन्दर निखार आया है परिणामतः उन्होंने अविराम अध्ययनरत रहते हुए व्या करण मध्यमा, साहित्य मध्यमा, न्यायतीर्थ, काव्यतीर्थ, जैन सिद्धान्ताचार्य, साहित्यरत्न इत्यादि
३६ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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