________________
ककककककककक
सफलता का रहस्य
- महासती श्रीमलजी महाराज
Addddddddddddsachch
महिमामयी पुण्य भूमि राजस्थान नर रत्नों की जन्म भूमि है, इस पावन पुण्य भूमि में आध्यात्मिकता और त्याग के बीज कण-कण में समाये हुए हैं । यहाँ का जन-जीवन सांस्कृतिक-आध्यात्मिक आदर्शों से सदैव अनुप्राणित रहा है । यहाँ के अनेक रण- वीर राष्ट्र भक्तों और अध्यात्म साधक सन्त-महात्माओं की गौरव गाथाएँ इतिहास के पृष्ठों पर अंकित हैं । जब उनका पुण्य स्मरण होता है तो हमारा सिर श्रद्धा से उन्नत समुन्नत हो जाता है ।
इसी पुण्य भूमि में हमारी श्रद्धेया बहिन महासती पुष्पवतीजी का जन्म हुआ, उन्होंने संयमसाधना कर जो कीर्तिमान संस्थापित किया है वह अध्यात्म-साधकों के लिए दीप स्तम्भवत् है ।
बाल्यकाल में हम कई बार साथ-साथ में हम - जोली होने के कारण खेलती रहीं, जब उन्होंने दीक्षा ग्रहण की तब मेरी भुआ हॉस्पिटल में थी, उनका हाथ जल गया था, भयंकर वेदना थी । मैं उनकी सेवा में रही, मैंने उस समय देखा मेरी भुआ उस विकट संकट की घड़ियों में भी संयम -साधना के महामार्ग को ग्रहण करने के लिए उत्सुक थी, उन्हीं के पावन सान्निध्य का फल है कि मैं उस समय तो नहीं, पर बाद में संयम मार्ग को ग्रहणकर सकी । और भुआ
महाराज का शिष्यत्व स्वीकार कर अपने जीवन को धन्य बना सकी ।
Jain Education International
पुष्पवतीजी प्रारम्भ से ही प्रतिभा सम्पन्न थी, उनमें विनय और विवेक की प्रधानता थी । जिससे सद्गुरुणीजी और माताजी महाराज का हार्दिक आशीर्वाद प्राप्त हुआ । जीवन का अर्ध शतक जिन्होंने साधना में बिताया है आपका यशस्वी साधना मय जीवन रहा है इसीलिए आपको अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा रहा है, मेरी यही हार्दिक अभिलाषा है कि आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें और हमरा मार्गदर्शन करती रहें । हम आपके नेतृत्व में साधना के पथ पर अग्रसर होती रहें । G
कककककककक कककककककक
- मदन मुनि 'परिक'
उनका जीवन प्रारम्भ से ही संस्कारित रहा है । पिता का तेज इन्हें विरासत में मिला और सद्- 44444444444464kbad+++++ गुरुणी श्री सोहनकुंवरजी म० की आध्यात्मिक निधि प्राप्त कर इन्होंने अपने जीवन को कसा, और माताजी श्री प्रभावतीजी ने जीवन निर्माण में आपको अपूर्व योगदान दिया । जिसके फलस्वरूप आज आप इतने महत्त्वपूर्ण पद पर पहुंची हैं ।
शुभाशिषः
मानव जीवन की प्राप्ति पुण्योदय से ही होती है । यही वह भव हैं जिसमें यदि जीव अप्रमादी होकर आत्म-साधना के पथ पर आगे बढ़े तो सदाकाल के लिए जन्म मृत्यु के चक्र से छूटकर मुक्ति की प्राप्ति कर सकता है ।
इस सत्य को सुनते तो बहुत लोग हैं किन्तु अपने हृदय में धारण बहुत ही कम कम कर पाते हैं । और हृदय में धारण करके निरन्तर एकाग्र - चित्त से साधना के पथ पर अग्रसर होते रहना तो इने-गिने लोगों के ही वश की बात होती है ।
विश्वसन्त उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज तथा चन्दनबाला श्रमणीसंघ की अध्यक्षा महासती सोहनकुंवरजी महाराज की सुशिष्या शुभाशीष | ३५
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org