________________
श्राविका का महत्त्व भी कम नहीं है । वे भी संघ के जिस घटिया स्तर से प्रस्तुत किया जा रहा है। आधार हैं, जो अपने आप में एक ऐसी मिशाल वहाँ जैन नारी एक आदर्श नारी के रूप में अपनी है जो अयन्त्र ढूँढ़ने पर भी नहीं मिल सकती। आन-बान और शान बनाये हुए है। उसका उज्जवल __ जहाँ तक आध्यात्मिक उत्क्रान्ति का प्रश्न है, और समुज्ज्वल जीवन आलोक स्तंभ की तरह पथ नारी पुरुष से किसी भी प्रकार कम नहीं है। वह प्रदर्शक है। केवलज्ञान और मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। साध्वी श्री पुष्पवतीजी जैन संसार की एक परम नारी तप और त्याग की, संयम और साधना की विदुषी साध्वीरत्न हैं, जो सर्वदा निस्पृह और निर्पक्ष ज्वलन्त प्रतिमा हैं, अद्भुत है उसकी महिमा अनुपम भाव से साधना के पथ पर अविराम गति से बढ़ती है उसकी गरिमा । ऐसा कोई काल नहीं रहा, रही हैं। उन्होंने न्याय, व्याकरण, काव्य, आगम जिसमें जन नारी पुरुषों से आगे न रही हों। प्रत्येक आदि दर्शन तथा नीति ग्रन्थों का तल स्पर्शी अध्यतीर्थङ्कर के समय श्रमणों की अपेक्षा श्रमणियों की यन कर अपने जीवन को चमकाया है। वे साधुसंख्या अधिक रही। श्रावकों की अपेक्षा श्राविकाएँ जीवन और मर्यादा के साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं । ऋजुता अधिक रहीं। जब हम आगमों में उनका तप और समता एवं करनी-कथनी की एकरूपता उनकी सहज त्याग से जगमगाता जीवन पढ़ते हैं तो हृदय उनके वृत्ति है। वस्तुतः गुण गम्भीर एवं शान्त प्रकृति की चरणों में नत हो जाता है, सिर श्रद्धा से झुक साध्वीरत्ना पुष्पवतीजी मानव समाज की गौरव हैं। जाता हैं।
ऐसी साध्वीरत्न का अभिनन्दन । तप-त्यागअतीतकाल में अगणित जैन नारियाँ हुई हैं, संयम, समता, सत्य, शील, सेवा, सदाचार का जिनके तप और त्याग की कमनीय कहानियाँ जन- अभिनन्दन है। मैं अभिनन्दन की इस मंगल वेला जन की जिह्वा पर अंकित हैं । आज भौतिकवाद के में अभिनन्दन करते हुए अपने आपको धन्य अनुभव युग में नारियों का बीभत्स रूप प्रस्तुत किया जा कर रहा हूँ। यह जैन नारी का अभिनन्दन है। रहा है । सत्य और शील की पावन प्रतीक नारी को
वि वि ध ता ओं का संग में
___...महासती प्रमोदसुधा जी
महासती पुष्पवती जी के जीवन में विविधताओं का मधुर संगम है। उनमें श्रद्धा की प्रमुखता है तो तर्कशक्ति भी कम नहीं है । उनमें समता की प्रधानता है तो शासक का मनोभाव भी है। उनमें हृदय की सुकुमारता है, वहाँ चरित्र पालन के प्रति पूर्ण कठोरता भी है। वे किसी भी व्यक्ति में गुणों की अपेक्षा करती है। और उसके दुगुणों की उपेक्षा करती हैं। उनमें जहाँ धर्म के प्रतिराग है, वहाँ संसार के प्रति विराग है । इस प्रकार उनका जीवन विविध विरोधी युगल का सरस संगम हैं।
एक दिन उन्होंने राजस्थान की पावन पुण्य धरा उदयपुर में जन्म ग्रहण किया। अभिभावक गणों के प्यार को ठुकरा कर साधना के महामार्ग पर कदम बढ़ाये । आत्मा में जो अनन्त ज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त आनन्द, अनन्त शक्ति है, उसकी अभिव्यक्ति के लिए ही उन्होंने साधना का पथ स्वीकार किया।
विविधताओं का संगम | २६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org