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दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन प्रसंग पर मैं अपनी लघु बहन पुष्पवती जी का हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ और यह मंगल भावना भाती हूँ कि वे पूर्ण स्वस्थ रहकर सद्गुरूणी जी के नाम को अधिकाधिक रोशन करें। उनका नाम सर्वत्र और सर्वदा चमकता रहे और उनके काम की महिमा सदा गाई जाय ।
ड़िया एवं माता प्रेम देवी के घर १८ नवम्बर १९२४ को जन्मी सुन्दर कुमारी ने मात्र १४ वर्ष की अल्पायु में संयमपंथ अंगीकार कर वैराग्यमय जीवन अपना लिया । गुरुणी महासती श्री सोहनकुंवरजी म० सा० एवं गुरु उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० सा० आदि के सान्निध्य में रहकर आपने अनेक जैन ग्रंथों व आगमों का गहन अध्ययन किया । चारित्रिक दृढ़ता एवं ज्ञान सम्पन्नता के साथ-साथ आपकी लेखनी भी सुसाहित्य सृजन में लग गई । जहाँ आपने अनेक रचनाओं का सर्जन किया वहीं अनेक
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बहुमुखी प्रतिभा -- श्री पुष्पवतीजी कृतियों का सफल सम्पादन भी किया । अपने दीर्घ
- उदय मुनि 'जैन सिद्धान्ताचार्य'
संयमी जीवन में आपने मेवाड़, मारवाड़ और म० प्र० आदि क्षेत्रों में पैदल विहारकर हजारों-लाखों धर्मालुओं को आत्म-कल्याण के सत्य धर्म पथ का ज्ञान कराया। आप श्री के बहुमुखी व्यक्तित्व से प्रेरित, प्रभावित होकर अनेक भष्य आत्माओं ने भगवती दीक्षा अंगीकार की ।
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भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में नारी शक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है । अपने विविध रूपों में नारी ने प्रेम, त्याग, करुणा व धर्म की ऐसी मिशालें प्रस्तुत की है कि सारा जग आज भी इसके सामने नतमस्तक सा है । सीता, अंजना, चंदनबाला, लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान आदि ऐसी अनेक महान् नारियाँ इस धरा पर हुई हैं जिन्होंने भारत का नाम सारे विश्व में रोशन किया है ।
महासती जी म० सा० अपने संयमी जीवन के स्वर्ण जयन्ती वर्ष में प्रवेश कर रही है । इस शुभअवसर पर हम सब मिलकर उनका सादर अभिनन्दन करते हुए उनके शतायु होने की कामना करते हैं । आप श्री अपने ज्ञान-ध्यान, संयम - साधना से आत्म-कल्याण के साथ-साथ जन-जन को सुपथ के लिए सदा प्रेरित करते रहे, इन्हीं शुभ भावों के साथ कलम को विराम देता हूँ ।
जैन धर्म परम्परा में भी ऐसी अनेक सतियाँश्राविकाएँ हुई हैं जिसके कारण यह धर्म अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता रहा है । महासती दनबाला, मैनासुन्दरी, मृगावती आदि अनेकों महासतियाँ जहाँ भूतकाल में हुई हैं वहीं वर्तमान में भी यह श्रृंखला अबाध रूप से जारी है । आज भी जैनधर्म में ऐसी अनेकों महासतियाँ विद्यमान है। जो कठोर संयमी पथ पर चलते हुए अपनी आत्मा का कल्याण करने के साथ-साथ भवीजनों को भी धर्म का सुमार्ग बता रही है । परम विदुषी साध्वी रत्न श्री पुष्पवती जी म० सा० एक ऐसी ही महासती हैं जो संयमी जीवन के स्वर्ण जयन्ती वर्ष में प्रवेश करने जा रही है ।
उदयपुर (राज० ) में पिता श्री जीवनसिंह बर
२८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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- श्री अजित मुनि 'निर्मल'
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श्रमण भगवान महावीर के धर्म शासन में जैन नारी का महत्त्वपूर्ण स्थान है । चतुर्विध संघ में दो संघों का सम्बन्ध नारी से है, एक साध्वी और दूसरी श्राविका । साधु और श्रावक की भांति साध्वी और
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