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साध्वारत्न पुष्पवता आभिनन्दन ग्रन्थ
सन् १९८५ का देहली का वर्षावास सम्पन्न कर पूज्य गुरुदेव श्री राजस्थान पधारे । पुनः आपके मदनगंज में दर्शन प्राप्त हुए। अजमेर और व्यावर में कुछ समय पुनः सन्निकट रहने का अवसर मिला । आचार्य सम्राट आनन्द ऋषि जी म. के आदेश को शिरोधार्य कर पाली वर्षावास सम्पन्न कर पूना पधारे और गुरुणी जी म. भी नाथद्वारा का वर्षावास पूर्ण कर पूना पधारीं । इस सम्मेलन में श्री देवेन्द्र मुनि जी म. को उपाचार्य पद प्रदान किया और आचार्य प्रवर के आदेश से गुरुदेव श्री का और आप श्री का वर्षावास आचार्य श्री के सान्निध्य में अहमदनगर में हुआ । आपकी समय-समय पर हित शिक्षाएँ मुझे मिली । इस समय भी मैं आपसे आगमों का अध्ययन करता रहा। गुरु और गुराणी वही है जो शिष्य और शिष्याओं पर चोट भी करते हैं और रक्षा भी । उनकी चोट निर्माण के लिए होती है । उनकी शिक्षाएँ जीवन निर्माण के लिए होती हैं । गुरुणीजीम की असीम कृपा मुझ पर रही है। उनकी असीम कृपा के फलस्वरूप ही मैं साधना के पथ पर अपने मुस्तैदी कदम बढ़ा सका । उनकी निर्मल छत्र छाया हम पर सदा बनी रहे। इसी मंगल आशा के साथ मैं अपने श्रद्धा स्निग्ध सुमन समर्पित कर रहा हूँ ।
यह है पारदर्शी व्यक्तित्व
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महासती प्रिय दर्शनाजी
व्यक्ति जन्म से नहीं, अपने कर्त्तव्य से महान् बनता है । सद्गुरुणीजी महाराज के सम्बन्ध भी यही बात है । जिस दिन उनका जन्म हुआ, परिवार के लोगों के लिये भी कोई अनहोनी बात नहीं थी । उस समय किसी को यह कल्पना भी नहीं थी कि एक महान आत्मा हमारे यहाँ पर जन्मी है । पर आज आपके अद्भुत कृतित्व को देखकर भारत के विविध अंचलों में रहने वाले श्रद्धालुओं ने आपके दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन प्रसंग पर अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने का निर्णय लिया है ।" जब यह निर्णय लिया गया तो अनेकानेक श्रद्धालुओं के हृदय कमल खिल उठे ।
लोभ, लिप्सा, भ्रम और क्रोध का दुनिवार महासती श्री पुष्पवतीजी का शान्त चेहरा करते हैं तो दर्शक को शान्ति का अनुभव और ज्योतिर्मय नेत्र आशा और शान्ति
आज संसार घृणोन्माद का शिकार हो रहा है। बोलवाला है । भ्रष्टाचार और पतन के युग में जब हम निहारते हैं, उनके शान्त चेहरे की ओर जरा-सा दृष्टिनिक्षेप होता है । उनकी आकृति मंगलमयी है । उनका चौड़ा ललाट का आश्वासन देते हैं । और उनके सन्तुलित व्यवहार से तो प्रत्येक व्यक्ति मुग्ध हो जाता है । लगता है साक्षात् महासती चन्दनबाला है । 'बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय' वे असीम मानवता का सन्देश लेकर पद यात्रा करती हैं । और जहाँ भी जाती हैं वहाँ पर नई भावना और नया वातावरण तैयार हो जाता है ।
मैंने सर्वप्रथम आपके दर्शन उदयपुर में किये । आपके
सम्बन्ध में मुझे मातेश्वरी श्रीमत
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