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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
उठो विरादर ! कस कमर, तुम धर्म की रक्षा करो । वीर के तुम पुत्र होके, गोदड़ों से क्या डरो ॥
उदयपुर वर्षावास में पूजनीया गुरुणी जी म. और पूजनीया प्रतिभामूर्ति माता जी म. श्री प्रभाती जी म. ने मुझे समय-समय पर सशिक्षाएँ दी हैं वे कभी भुलाई नहीं जा सकती ।
सन् १६८२ में परमादरणीया माताजी म. के स्वर्गवास हो जाने से गुरुणी जी म. का वर्षावास जोधपुर में गुरुदेव के साथ हुआ । उस वर्षावास में आपने मुझे अन्तकृतुदशांग सूत्र, विपाक सूत्र आदि आगमों का अध्ययन कराया । जब कभी भी मैं गुरुणीजी स. की सेवा में बैठा तब वे मुझे ज्ञान की ही बात बताती रहीं । कभी भी निरर्थक बात करना उन्हें पसन्द नहीं । वे चाहती हैं कि प्रत्येक क्षण का उपयोग किया जाय । व्यापारी वही महान् बनता है जो एक-एक पाई का हिसाब रखता हो । जो व्यापारी पैसे का दुरुपयोग करता हो जिसे आवक व जावक का पता ना हो, वह महान् नहीं बन सकता । जो एक समय का सदुपयोग करता है वही श्रेष्ठ और ज्येष्ठ बन सकता है ।
सन् १९८३ का वर्षावास गुरुदेव श्री का मदनगंज किशनगढ़ में हुआ । उस वर्ष भी भाग्य से आपका वर्षावास भी वहाँ पर हुआ । उस वर्षावास में मैंने आपसे दशवैकालिक सूत्र, तत्त्वार्थ सूत्र आदि का अध्ययन किया । ज्यों-ज्यों आपका निकट सम्पर्क हुआ, त्यों-त्यों मेरी श्रद्धा आपश्री के प्रति दिन प्रति दिन बढ़ती ही चली गई। इसका मूल कारण है आप में सहज सरलता है, सौम्यता है और अपार वात्सल्य भावना है । आपमें सदा हित की बुद्धि रही होने से जो भी बात आप फरमाती हैं वह वात सीधी हृदय में बैठ जाती है ।
गुरुणी जी महाराज का ज्ञान अगाध है । वे आगम की गम्भीर ज्ञाता हैं । आगम के रहस्यों को जिस खूबी से समझाती हैं कि वह विषय सहज समझ में आ जाता है । आपश्री ने दशवैकालिक सूत्र का बहुत ही शानदार सम्पादन किया है । उस पर आपने जो विवेचन लिखा है वह बहुत ही सुन्दर है ।
गुरुणी जी महाराज के मैंने अनेक बार प्रवचन सुने हैं । उनके प्रवचन बहुत ही मार्मिक होते हैं । उनके प्रवचनों को सुनते समय ऐसा सहज अनुभव होता है कि हम भीष्म-ग्रीष्म ऋतु में उपवन में बैठे हुए शीतल मन्द, सुगन्धित समीर का आनन्द ले रहे हैं । वे प्रवचन को धीरे से प्रारम्भ करती हैं और विषय की गहराई में श्रोताओं को इस प्रकार ले जाती हैं श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते हैं । और फिर रूपक के द्वारा उस विषय को इस तरह प्रतिपादित करती हैं कि श्रोता अपने आप को धन्य-धन्य अनुभव करने लगता है । गम्भीर विषय को भी सरल रूप में प्रस्तुत करने की कला में वैराग्य का सम्पुट रहता है।
आप पूर्ण दक्ष हैं । आपके साथ ही मौलिक चिन्तन
प्रवचनों की सबसे बड़ी विशेषता है कि उसमें और मौलिक उद्भावनाओं की प्रचुरता होती है ।
आपके जीवन में क्षमा, शान्ति निर्लोभता आदि सद्गुणों का प्राधान्य हैं । यदि यह कह दूँ कि आपका जीवन गुणों का आगार है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आप में नाम की चाह नहीं है । जब मैंने “अभिनन्दन ग्रन्थ" निकालने के सम्बन्ध में आपके लघु भ्राता, उपाचार्य गुरुदेव श्री देवेन्द्र मुनि जी म. से कहा—उस समय आप वहीं पर विराजमान थीं । आपने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में निषेध किया और कहा कि मेरे में कहां गुण हैं ? मैं एक छोटी साध्वी हूँ । यदि ग्रन्थ निकालना है तो सद्गुरुणी जी म. के या माता जी म. के नाम से निकालें । वे बिल्कुल ही निर्लिप्त रहीं हैं । उनकी निर्लिप्तता से मैं और अधिक प्रभावित हुआ ।
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| प्रथम खण्ड, शुभकामना : अभिनन्दन
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