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साधारन पुष्यता आभनन्दन ग्रन्थ
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प्रवचन-साहित्य-समीक्षा साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी की प्रवचन शैली
-डॉ. नरेन्द्र भानावत (एसोशियेट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर)
అందరి ముంబంలంలందుకుంభవించడం లాంచించడం
भारतीय सन्त परम्परा की तरह साध्वी पर- और अनन्त विभु से साक्षात्कार कराता हो। जो म्परा का भी अपना विशिष्ट स्थान है । भ० महावीर नश्वर है, जीर्ण-शीर्ण है, उसमें आपको सुन्दरता के स्वामी ने जिस चतुर्विध संघ की स्थापना की, दर्शन नहीं हुए । जहाँ अभाव है वहाँ सौन्दर्य कैसा ? उसके अंग हैं-साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका । वैभव कैसा ? सौन्दर्य और वैभव वहाँ है जहाँ महावीर के शासन में १४००० साधु थे और अभाव नहीं । इस अनन्त सौन्दर्य की खोज और ३६००० साध्वियाँ । साध्वियों का नेतृत्व महासती उसकी जिज्ञासा के फलस्वरूप ही आपने १४ वर्ष चन्दनबाला के हाथों में था। चन्दनबाला की यह की अवस्था में १२ फरवरी १६३८ को अध्यात्म साध्वी परम्परा आज तक अविच्छिन्न रूप में चली योगी उपाध्याय श्री कृष्करमनिजी म. सा० के आ रही है । इसी परम्परा की जाज्वल्यमान नक्षत्र सान्निध्य में उनकी आज्ञानुवर्तिनी शिष्या महासती। हैं विदूषी महासती श्री पुष्पवतीजी। आपका जन्म श्री सोहनकंवर जी के नेश्राय में भागवती दीक्षा १८ नवम्बर, १६२४ में उदयपुर में सेठ श्री जीवन- अंगीकत कर ली। आपका परा परिवार ही वीतसिंहजी बरडिया की धर्मपत्नी श्रीमती प्रेमदेवी की रागिता के लिए समर्पित परिवार है। आपकी कुक्षि से हुआ। आपका नाम रखा गया-सुन्दर- माता प्रभावतीजी श्रमण संघ की श्रेष्ठ साध्वी थीं कमारी । आप जन्म से ही विलक्षण प्रतिभा की और आपके भाई श्री देवेन्द्रमनिजी जीवन मल्यधनी थीं। आपकी दृष्टि अन्तर्भदिनी और विचार वाही उदात्त भावना के श्रेष्ठ सन्त साहित्यकार हैं। उदात्त थे । यही कारण है कि आपने अपने नाम के महासती श्री पुष्पवतीजी का व्यक्तित्व पुष्प की अनुरूप सौन्दर्य की खोज की। आपको सांसारिक तरह कोमल और मधर है। आपने जैन-जैनेतर बाह्य सौन्दर्य आकर्षित नहीं कर सका। आप उस ग्रन्थों का मन्थन कर जो मकरन्द निकाला, वह अनन्त सौन्दर्य की खोज में रहीं जो शब्द, वर्ण, प्राणीमात्र के लिए कल्याणकारी है। आपने राजरस, गन्ध, स्पर्श से परे देहातीत हो, इन्द्रियातीत हो स्थान एवं मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र के विविध
साध्वीरत्नश्री महासती पुष्पवतीजी की प्रवचन शैली-डॉ. नरेन्द्र भानावत । २४९
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