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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
क्षेत्रों में पद यात्रा कर अपने सद्गुण मकरन्द और मुनिजी द्वारा सम्पादित होकर जुलाई १९८२ में महक से जन-जन को सुवासित और पुष्ट किया है। श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, शास्त्री सर्कल उदय
आप एक सच्ची जैन साध्वी हैं । अपनी पुर द्वारा प्रकाशित है। इस संकलन में साध्वीश्री दैनन्दिन-चर्या में आप नित्य प्रति स्वाध्याय और के १३ प्रवचन संग्रहीत हैं। उनमें अहिंसा, सत्य, ध्यान का अभ्यास करती हैं। स्वाध्याय और ध्यान अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और स्याद्वाद, इन के मणिकांचन संयोग से जो अनुभूतियाँ आपको जीवन मूल्यों पर शास्त्रीय एवं व्यावहारिक दोनों प्राप्त होती रहती हैं, उन्हें आप अपनी वाणी के दृष्टियों से प्रकाश डाला गया है। माध्यम से समय-समय पर व्यक्त करती रही है। प्रत्येक मनष्य इस संसार में जन्म लेता है और आपकी यह वाणी पुस्तकीय वाणा न होकर अनु- अपने कर्मानुसार जीवन यापन कर मरण को प्राप्त भति के आधार पर जीवन-सत्य का उद्घाटित होता है। जीवन की सार्थकता अपने से परे जो करने वाली वाणी है। इसीलिए उसमें जन-मन की
जीवन-जगत और शेष सृष्टि है, उसके साथ प्रेम, गहराई तक प्रभावित करने की क्षमता है । आपकी
मैत्री, सहयोग और सत्य का सम्बन्ध स्थापित करने वाणी साधारण वचन नहीं, वह 'प्रवचन ह। क्याकि में है। भ० महावीर ने जीवन की सार्थकता के लिए उसमें आत्म-चेतना का विशेष प्रभाव और आत्म- पाँच महाव्रतों-अणवतों और तथागत बुद्ध ने पंचबल को विशेष प्रभा है । जब वचन के साथ आच- शील का विधान किया है। महासतीजी ने अपने रण जुड़ता है तब वह प्रवचन बन जाता है। प्रव- प्रवचनों में इन्हीं जीवन मूल्यों का धर्मशास्त्र, लोकचन की शक्ति तीर की तरह बेधने वाली होती है। शास्त्र, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य प्रसिद्ध जैन आचार ग्रन्थ 'वृहत्कल्पभाष्य' में में विवेचन-विश्लेषण किया है। अपने विवेचन में कहा है
उनका बहुआयामी और बहुश्रुत व्यक्तित्व स्पष्टतः गुणसुट्ठियरस वयणं घय-परिसित्तृव्व पवओ भवड। झांकता प्रतीत होता है। संक्षेप में उनके प्रवचन गुणही स्स न सोहप नेहविहूणो जह पईवो ॥
साहित्य की विशेषताओं को इस प्रकार रेखांकित
किया जा सकता हैगुणवान व्यक्ति का वचन घृत सिंचित अग्नि की तरह तेजस्वी एवं पथ-प्रदर्शक होता है जबकि (१) महासतीजी जिस विषय का वर्णन करती गुणहीन व्यक्ति का वचन स्नेहरहित (तेल शुन्य) हैं, वे उसके शब्दार्थ को स्पष्टकर उसकी परिभाषा दीपक की भाँति निस्तेज और अन्धकार से परिपर्ण। निर्धारित कर विषय के स्वरूप का विश्लेषण
करती चलती हैं । अपने स्वरूप-विश्लेषण में उनकी कहना न होगा कि महासती पुष्पवतीजी के
दृष्टि किसी मत, परम्परा या सम्प्रदाय में न उलझप्रवचन गुणसम्पन्न होने के कारण तेजस्विता और
कर चित्तवृत्ति के रूप में उसका विवेचन करती ताजगी लिए हुए हैं।
है। अहिंसा के सम्बन्ध में उनके ५ प्रवचन हैं। यों तो महासतीजी जहाँ-जहाँ भी विचरण अहिंसा उनकी दृष्टि में जैनधर्म का प्राणतत्व है। करती हैं, यथावसर जनमानस को धर्मोपदेश देती अहिसा को समग्र रूप से समझने के लिए वे उसके ही हैं । यदि उनकी समस्त देशना संकलित की प्रवृत्यात्मक और निषेधात्मक दोनों पक्षों पर प्रकाश जाय तो कई ग्रन्थ भरे जा सकते हैं । पर इस समय डालते हुए कहती हैं-'जैन दर्शन में अहिंसा के दा हमारे समक्ष उनके प्रवचनों का प्रतिनिधि संकलन पक्ष हैं । (क) नही मारना यह अहिंसा का एक पहलू "पुष्प पराग' है जो साहित्य वाचस्पति श्री देवेन्द्र है, (ख) मैत्री, करुणा, दया, सेवा यह उसका दूसरा
| २५० तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन
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