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HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHIममा
साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
धिक्कार राज्य को जिसका मोह बड़ा है । जिससे न सूझता सर पर काल खड़ा है ।।
ज्यों भँवर फूल पर रहते जीव लुभाई। परिवार कुटुम्ब बड़ा बंधन है मन का । मिलता न समय भी धर्म ध्यान चिन्तन का
श्री सरितासुत का चिन्तन क्रम बदला ही। जिस कवि और लेखक की अनुभूति जितनी अधिक तीव्र होगी, उतनी ही अभिव्यक्ति सशक्त और प्राणवान होगी। कवयित्री ने अपने काव्य सूक्तियां और उक्तियां इस प्रकार जड दी हैं, मानो स्वर्ण में नगीने जड़ दिए गए हों। जो अपनी चमक और दमक से जनमानस को मुग्ध कर दें। सत्य, धर्म, विनय, आदि सदगुणों के सम्बन्ध में लेखिका की कलम ने कमाल ही दिखाया है। उनकी उक्तियां बड़ी मार्मिक और हृदयस्पर्शी है "जिओ और जीने दो" का सिद्धान्त लेखिका ने कितने सजीव शब्दों में प्रयुक्त किया है-- हम लड़ें न परस्पर करें न छीना-झपटी । दिल सरल बनायें क्यों कहलायें कपटी ।।।
लो प्रेमभाव, सद्भाव शान्ति अपनाई। प्रस्तुत काव्य का प्रणयन दोहे, चौपाई और राधेश्याम की तर्ज पर किया गया है। सर्वत्र काव्य में प्रसाद गुण व्याप्त है । सरसता, सरलता और सुबोधता का ऐसा त्रिवेणी संगम हुआ है, जिसमें अवगाहन करने वाला पाठक सदा-सर्वदा के लिए पाप-ताप व सन्ताप से मुक्त हो जाता है। ग्रन्थ को पढ़ते समय राष्ट्रीय कवि स्वर्गीय मैथिलीशरण गुप्त के काव्य-ग्रन्थों का स्मरण हो आता है । महासती जी की सहज प्रतिभा सर्वत्र मुखरित हुई है । लगता है-कवयित्री को काव्य बनाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता नहीं हुई है, वह सहज ही बन गया है । भाषा भावों को वहन करने में सक्षम है। भाषा बहुत ही सरल और सहज है । तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग तो हुआ ही है, साथ ही प्रतिदिन जीवन-व्यवहार में आने वाले विदेशी शब्दों का प्रयोग भी यथास्थान हुआ है। कहीं पर त्वत्प्रतिज्ञार्थ, प्लावित, आक्रन्दन जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द है तो कहीं पर फरमाया, मालजादी, खुलासा, नक्की आदि शब्दों का सार्थक प्रयोग हुआ है।
प्रस्तुत काव्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग भावोत्कर्ष में बहुत ही सहायक हुआ है । अलंकार स्वतः ही आए हैं; लेखिका को प्रयास करने की आवश्यकता ही नहीं हुई है।
जिस पावन-पवित्र उद्देश्य से इस चरित्र-मूलक काव्य का सृजन किया गया है उसमें लेखिका पूर्ण सफल रही है । जैनश्रमण और श्रमणियों का जीवन त्यागमय होता है । भौतिकवाद की आँधी में जहाँ मानव अध्यात्म को भुलाकर भौतिक ऋद्धि, समृद्धि और उपलब्धि के लिए ललक रहा है। वैज्ञानिक चिंतन मानव को भौतिक सुख-सुविधाएँ अधिकाधिक प्राप्त कराने के लिए प्रयत्नशील हैं; आज वैज्ञानिकों की कृपा से भौतिक सुख-सुविधाओं के अम्बार लग चुके हैं। प्राचीन युग में जो सुविधाएं राजा-महाराजाओं को नहीं थीं, वे सुविधाएं सामान्य नागरिकों को भी प्राप्त है तथापि जन-जीवन में अशान्ति का साम्राज्य है। द्रौपदी के दुकूल की तरह तृष्णाएं बढ़ रही हैं। उनकी शान्ति का उपाय इस काव्य में विदुषी लेखिका ने प्रतिपादित किया है।
लेखिका का गम्भीर अध्ययन और प्रकृष्ट प्रतिभा का काव्य में सर्वत्र संदर्शन होता है। लेखिका जैन साध्वी हैं, इसलिए उनके काव्य में वैराग्य रस की प्रधानता होना स्वाभाविक और सहज है। आज शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक शिक्षा की ओर चिन्तकों का ध्यान केन्द्रि है और उस दृष्टि से यह चरित्र काव्य नैतिक काव्य की कोटि में परिगणित किया जा सकता है। मुझे आशा ही नहीं; अपितु दृढ़विश्वास है कि इस काव्य के प्रकाशन से हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि होगी।
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२४८ ! तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन
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