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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
कैसे होगा ? जिस कार्य से गुरु दर्शन व धर्म-श्रवण से वंचित रहना पड़े, वह कुरीति है । तुम इसका त्याग करो । आज मुझे तुम्हारे से यही भिक्षा चाहिए ।
उस राजस्थानी वीरांगना ने मेरे कथन का स्वागत किया और दूसरे दिन वह प्रवचन श्रवण के लिए पहुँच गई ।
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(४) मैं एक बार स्कूल में ठहरी हुई थी । अध्यापकों के आग्रह पर मैंने प्रवचन दिया । प्रवचन के. पश्चात् धार्मिक प्रश्नोत्तरों का कार्यक्रम रखा गया । विविध प्रकार के प्रश्न किए गए। एक अध्यापक ने अन्त में प्रश्न किया कि महासतीजी मैं खाँसी की व्याधि से सन्तप्त हूँ । आप कुछ उपाय बता दें तो मैं सदा-सदा के लिए इस रोग से मुक्त हो सकता हूँ ।
मैंने अध्यापक महोदय से पूछा- आप सिगरेट, बीड़ी और तम्बाकू तो नहीं पीते हैं न ? अध्यापक ने कहा- बीड़ी-सीगरेट तो खूब पीता हूँ । चौबीस घण्टे में कम से कम दो-तीन पैकेट तो पी लेता हूँ ।
मैंने कहा— तब तो आपको खाँसी अवश्य आएगी, आप चाहे कितनी भी दवाइयाँ खा लें कुछ भी फायदा नहीं होगा । तम्बाकू में एक नहीं पैंतीस विष सम्मिलित हैं । और जब सिगरेट जलती है तो उसमें तीन सौ विष पैदा हो जाते हैं । तम्बाकू से कैंसर, दमा, हृदय रोग, मस्तिष्क रोग, क्षय, खाँसी आदि भयंकर रोग समुत्पन्न होते हैं । नाना विष सामग्री में निकोटिन विष की मात्रा अधिक होती है । यह विष प्राणघातक है । एक पौण्ड तम्बाकू में तीन सौ अस्सी ग्रेन निकोटिन है । यह विष संखिया से भी अधिक तीव्र है । यदि एक बूंद कुत्ते और बिल्ली को दी जाय तो वे दो-तीन मिनट में ही छटपटा कर प्राणों को त्याग देंगे ।
अध्यापक महोदय ने कहा- महासतीजी ! सिगरेट छोड़ने की चीज थोड़े ही है । वह तो आज के युग की सभ्यता है । जो लोग सभ्य हैं, वे ही सिगरेट का उपयोग करते हैं ।
मैंने कहा- आप नहीं छोड़ेंगे तो एक दिन सिगरेट आपको छोड़ देगी ।
यह बात सुनते ही अध्यापक महोदय ने खड़े होकर प्रतिज्ञा ग्रहण की कि अब मैं कभी भी सिगरेट नहीं पीऊँगा ।
दूसरे अध्यापक ने कहा- महासतीजी ! आपने हमारे स्नेही साथी को सिगरेट छुड़वा दी । पर हमारे गाँव में एक बहुत बड़ा मन्दिर है। एक बहुत बड़े महन्तजी रहते हैं। उनकी बहुत बड़ी जागीरी है । वहाँ पर हमेशा भाँग, अफीम और तम्बाकू का दौर चलता रहता है । महन्तजी निरन्तर तम्बाकु पीते हैं ।
मैंने अध्यापक महोदय से कहा- यह खेद की बात है । आज धर्म स्थान भी व्यसनों के अड्डे वन गए हैं । बताइए, यदि आरोग्य केन्द्र रोग केन्द्र बन जाय तो उपचार कहाँ होगा ? सर्वप्रथम आवश्यकता है कि धार्मिकों को व्यसन से मुक्त होना चाहिए । धर्मस्थान व्यसनमुक्त रहें । इसी में उनका गौरव सुरक्षित है।
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(५) मैं एक बार भिक्षा के लिए जा रही थी । मैंने देखा एक वर राजा बहुत ही धीमी गति से
प्रेरणा के निर्झर : संस्मरण २१७
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