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साध्वारत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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___ मदनगंज संघ श्रद्धय सद्गुरुवर्य के वर्षावास हेतु वर्षों से ललक रहा था, वे भी चाहते थे कि हमारे यहाँ से आशा जी साध्वी, किरणप्रभा जी और रत्नज्योति ने दीक्षा ग्रहण की है उसके बाद महासती जी का वर्षावास मदनगंज में नहीं हआ है। गुरु चरणों में यदि साथ ही वर्षावास हो जाय तो सोने में सुगन्ध का कार्य हो जायेगा । मदनगंज संघ की भक्ति ने अपनी शक्ति बताई और महासती जी का २०४० का वर्षावास गुरुदेव श्री के सान्निध्य में मदनगंज में सम्पन्न हुआ। इस वर्षावास में अनेक आगमिक और दार्शनिक ग्रन्थों का स्वाध्याय हुआ। तथा समय-समय पर आपके मौलिक प्रवचनों का भी लाभ जनता जनार्दन को प्राप्त होता रहा ।
वर्षावास के पश्चात् दि० १६ जनवरी को बेंगलूर निवासी निर्मला खिंवसरा की दीक्षा आपश्री के पास सम्पन हुई । जब देवेन्द्र मुनिजी का स्वास्थ्य कुछ स्वस्थ हुआ तो उपाध्यायश्री ने वहाँ से जयपुर, आगरा, मथुरा, वृन्दावन होते हुए देहली की ओर प्रस्थान किया। किन्तु महासती चत्तरकुंवरजी वृद्धावस्था के कारण अधिक लम्बे विहार की स्थिति में नहीं थे, इसलिए किशनगढ के आस-पास के क्षेत्रों को स्पर्शकर आपने स. २०४१ का वर्षावास किशनगढ़ संघ की प्रार्थना को सम्मान देकर किशनगढ़ करने का निश्चय किया।
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___किशनगढ़ एक ऐतिहासिक राजधानी रही है। वहाँ समय-समय पर ऐसे अद्भुत चित्रकार हुए जिन्होंने अपनी तूलिका के चमत्कार से ऐसे मनोहारी चित्रों का अंकन किया जिससे किशनगढ़ की शैली के नाम से वह विश्रुत हुई। आज भी उसी शैली को आदर्श मानकर चित्र बनाने वाले कुछ चित्रकार वहाँ हैं जिनके चित्र देश और विदेशों में जाते हैं।
किशनगढ़ का महत्त्व इस दृष्टि से भी रहा है कि वहाँ पर जैन जगत के ज्योतिर्धर आचार्य श्री अमरसिंह जी महाराज ने वर्षावास किये, अनेक बार उनके चरणारविन्दों से वह धरती पावन बनी। महासती भागाजी आदि अनेक साध्वियों का वहाँ विचरण रहा, इसलिए आपने वहाँ वर्षावास करना अधिक उपयुक्त समझा । इस वर्षावास की यह प्रमुख विशेषता रही कि वहाँ प्रवचन में जैनियों के अतिरिक्त वैष्णव और मुसलमान भाई भी पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होते रहे । प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर फैयाज अली भी प्रतिदिन उपस्थित होते और एकाग्र होकर प्रवचनों को श्रवण करते । जब अच्छे श्रोता प्रवचन में उपस्थित होते हैं तो वक्ता सहज रूप से खिल उठता है। आपने विविध विषयों पर चार माह तक निरन्तर प्रवचन किये और समय-समय पर स्थानीय चिन्तकों की विचार गोष्ठियाँ भी आयोजित हुईं। उन विचार गोष्ठियों में विविध विषयों पर खुल कर चर्चाएँ भी होती रहीं।
परम सेवामूर्ति महासती श्री चत्तरकुंवरजी जिनके जीवन का मूल मन्त्र सेवा रहा और जीवन भर उस मन्त्र को अपनाकर सेवा करती रहीं उनकी बढ़ती हुई वृद्धावस्था के कारण तथा अस्वस्थता के कारण लम्बे बिहार की स्थिति नहीं थी इसलिए आप वर्षावास के पश्चात सन्निकट के क्षेत्रों को पावन करती रहीं और जहाँ भी आप पधारी वहाँ के जन मानस में धार्मिक संस्कार पल्लवित और पुष्पित करती रहीं।
आपश्री का सन् १९८५ का वर्षावास राजस्थान के बहुत ही छोटे से गाँव हरमाड़ा में हुआ। गाँवों में ही भारतीय संस्कृति का सांस्कृतिक रूप निहारा जा सकता है। गांवों के लोग न वाचाल होते हैं और न उद्दण्ड ही होते हैं, उनमें सहज भोलापन होता है। स्वभाव से सीधे और सरल होते हैं । जहाँ
एक बूद : जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १६५
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