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सावारनपुoldता आमनन्दनन्थ
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पर प्रायश्चित्त दिया जाता था। गुरुणीजी सोहनकुंवरजी ने सोचा युग बदल चुका है। पहले गृहस्थों की लड़कियाँ भी नहीं पढ़ती थीं। पर आज लड़कियाँ भी उच्चतम अध्ययन करती हैं। गृहस्थवर्ग प्रबुद्ध हो रहा है । और साधु समाज यदि अध्ययन से इसी प्रकार कतराता रहा तो गृहस्थ वर्ग का नेतृत्व कैसे कर सकेगा? उनकी ज्वलन्त समस्याओं का समाधान किस प्रकार कर सकेगा? इसलिए गुरुदेव ने जो सुझाव दिया है, उसे अमल करना ही होगा। साध्वियों को पण्डित पढायेगा। इस बात को लेकर समाज में रूढ़िचुस्त व्यक्ति ऊहा-पोह भी करेंगे । पर सत्य के लिए डर किस बात का ! उन्होंने दृढ़ निश्चयकर दूसरे दिन गुरुदेव से निवेदन किया कि मैं इन दोनों का भविष्य उज्ज्वल और समुज्ज्वल देखना चाहती हूँ। इसलिए इनको व्यवस्थित अध्ययन कराऊँगी। इस वर्ष वर्षावास स्वीकृति सलोदा गाँव की हो चुकी है । वहाँ पर पण्डित मिलना कठिन है पर चातुर्मास के पश्चात् फिर लम्बे समय तक इनका अध्ययन व्यवस्थित रूप से चलेगा।
गुरुदेव श्री उदयपुर से विहार कर गोगुन्दा नान्देशमा होते हुए कम्बोल चातुर्मास के लिए पधार गये।
माँ से दूर हुआ धन्नालाल ___ डॉक्टर मालमसिह जी ने किसी बहाने से बालक धन्नालाल को उदयपुर भेज दिया । धन्नालाल अपनी मौसी राजबाई के पास रहने लगा। किन्तु माँ का प्यार उसकी स्मृति में आते ही उसकी आँखों से आँसू बरस पड़ते । माँ की वेदना की कल्पना कर वह सिहर उठता। अत्यधिक रोने से उसकी आँखें सूज गई। और आँखें आ भी गई। आँखें आने से भयंकर दर्द हो रहा था। उसकी शारीरिक स्थिति अस्त-व्यस्त थी। उसका फूल-सा कोमल मुखड़ा मुरझा गया था। सुन्दरि कुमारी जब गृहस्थाश्रम में थी। तब माता-पिता के पश्चात् सबसे अधिक प्यार अपने प्यारे छोटे भैया धन्नालाल पर था। वह उसे नहलाती और बढिया वस्त्र और आभूषण पहनाती। जब कभी भी सन्त-प्रवचन श्रवण के लिए जाती तब वह उसे साधुवेश पहनाती । गौरवर्ण होने के कारण वह बहुत ही सुहावना व लुभावना लगता था। पर आज उसकी यह दशा देखकर महासती पुष्पवतीजी के आँखों में भी पानी आ गया। बहन की ममता जाग गयी।
धन्नालाल ने रोते-रोते कहा-बहिन ! तुम साध्वी बन गई हो। माताजी की यह स्थिति है। प्रतिदिन उनके हाथ के माँस को काटा जाता है। जब माँस काटते हैं तो चारों ओर खुन के फव्वारे छूटते हैं। बड़ी भयंकर वेदना होती है। उस वेदना के कारण कई बार माँ बेहोश हो जाती है। यदि माँ पिता की तरह संसार से चल बसी तो मेरी दीक्षा कैसे हो सकेगी?
इस प्रश्न का उत्तर बहिन महाराज के पास मौन के सिवाय कुछ नहीं था। यद्यपि धन्नालाल की मौसी राजबाई उसको बहुत ही प्यार करती थी और उसके मौसा कन्हैयालालजी लोढ़ा पुत्र को तरह प्यार करते थे । किन्तु माँ के प्यार की पूर्ति मौसी स कर कैसे कती !
उस वर्ष सद्गुरुणीजी श्री सोहनकुंवरजी का वर्षावास सलोदा निश्चित हो चुका था। जो हल्दीघाटी के पास में है और नाथद्वारा से पच्चीस किलोमीटर पर अवस्थित है। अतः उन्हें विहार करना था। साथ ही बहिन पुष्पवतीजी भी जाने वाली थी । क्योंकि दीक्षा लेते ही यह प्रथम वर्षावास था । धन्ना
[ के लिए उदयपुर में जो एक मात्र सहारा बहिन का था वह भी छूट रहा था। पर कोई उपाय नही था। उसकी उम्र पाँच वर्ष की होने के कारण वह इस समय दीक्षा भी नहीं ले सकता था। माता हिम्मत नगर ही थी।
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एक बूद, जो गगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १८९
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