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साध्वारत्नपुष्पवती आभनन्दन ग्रन्थ
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महिमा छाई चारों ओर
-वैरागी संजय जैन (वर्तमान- श्री सुरेन्द्र मुनि)
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पुष्प गुरुणी की महिमा छाई है चारों ओर,
भवरा नाचे फूलों पर, ज्यों जनता आवे दौड़ ॥टेर।। बाल अवस्था में संयम धारा, वाणी की तुम हो निर्मल धारा । आप तिरे और तारे जन-जन का किया उद्धार ॥१॥ मार्ग संयम का आपने बताया, अवगुण जीवन से दूर भगाया। कदम आपके बढ़ते हैं, मुक्ति नगर की ओर ॥२॥ नर-नारी गाते हैं गौरव तुम्हारा, तेज चमकता है जैसे सितारा । सावन में बादल की गर्जन, सुन नाचे मोर ॥३।। दौड़ के तुम्हारे दर्शन को आऊँ, दर्शन करके जीवन धन्य बनाऊँ। भव-भव के इस चक्कर से, आप बचावो मोय ॥४॥ गुरुणी जी मेरी वन्दना स्वीकारो, नया भंवर में पड़ी पार उतारो। "संजय" पुकारे मेरे काजलिया की कोर ॥५॥
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MERIHIMI RRITHIPARम मामा
महिमा छाई चागे ओर | १३५
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