________________
साध्वारत्न पुष्पवता अभिनन्दन ग्रन्थ
Dr.
.
गंगा की जब धार बनी धर्म, दर्शन, कला संस्कृति का लेखा है। मानव के अन्तस्तल ने समता को जब-जब देखा है जीवन्त हुआ सपना जीवन सुन्दर आनन्द बना अतीत के चलचित्रों की मणि प्रदीप की रेखा है अक्षर ज्ञाता कोई नारी ब्राह्मी सी बनी हमेशा है सूत्र ग्रन्थियों की गणना पावन क्षितिज पर संख्य-असंख्य- अनन्त रूप की सुरम्य सुन्दरी सुलेखा है अग्नि पूज्य हुई सीता प्रवेश की धूम मची जब पतिव्रत, वात्सल्य सेतु से सागर का उल्लास तरंगो में लहराता हैं राजुल का संकल्प जीवन्त हुआ जन-मन में नारी की ममता भी समता का स्वर देती है सौभाग्य संस्कृति कभी नहीं होती है। जिस संस्कृति के कण-कण में चन्दना की चन्दन सम सुरभि सुरभित होती है। एक नहीं अनेकानेक नारियाँ शक डाल पुत्रियाँ यक्षा, रेणा, बेणा भवगती दीक्षा जब धार चुकी सरस्वती सुर सुन्दरी बाला
–श्रीमती माया जैन, उद यपुर भागा, सद्दा, फत्तू चेना रत्ना जी सी महासती लक्षमा, रंभा, नबला रूपकुंवर की हवा चली छगन मगन हुई आगम में ज्ञान कुंवर सी तपोधनी जाने कितनों ने विदुषी पद पाया कितनों ने किया उद्धार समाज और देश राष्ट्र का लाभ कुँवर की पावन गंगा डाकू तस्कर का दिल खींच सकी एक कली जब बनी यौवना सिद्ध स्वरूप के गुण गाती वजी शहनाई अमर लोक की पुष्कर में वह कूद पड़ी आगम रहस्य श्रुत सूत्र सार से कली-कली ही नहीं रही वह पुष्पवती वह महासती गुरु पुष्कर से ज्ञान रश्मि का बोध लिखा चमक उठा गगनांचल सारा समता के सरल विचारों से जन जीवन में अमृत रस को घोल सकी पावन वह धन्य धरा मधुर मृदुल जन वाणी से संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी राजस्थानी का भी राग जगा बरसाती अमृत नीर सदा शत-शत वन्दन अभिनन्दन से 'माया' की सविता गंगा की जब धार बनी।
१३४ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
www.jainelion